मन का मंत्र जो चाहोगे वही मिलेगा | Buddhist Story On law of attraction

 अपने मन में जिस चीज़ का विचार करोगे वही चीज़ तुम्हें मिलना शुरू होगी. अगर पैसे के बारे में विचार करते हो तो आपके पास पैसा आना शुरू होगा. अगर आप अपने प्यार के बारे में विचार करोगे तो आपको आपका प्यार जल्द ही मिलेगा. गौतम बुद्ध के अनुसार हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं जिस तरह कोई व्यक्ति बुरी सोच के साथ बोलता या काम करता है, तो उसे कष्ट ही मिलता है. वही यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों के बोलता या काम करता है तो उसकी परछाई की तरह ख़ुशी उसका साथ कभी नहीं छोड़ती है. वही गौतम बुद्ध की यह कहानी जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं. इसे सुनने के बाद आप जीवन की सभी समस्याओं को चुटकियों में हल करने में सक्षम रहेंगे 

दोस्तों एक बार की बात है, महात्मा बुद्ध प्रवचन दे रहे थे, प्रवचन में आसपास के बहुत से लोग शामिल थे, सभी लोग ध्यान से बुद्ध को सुन रहे थे. कुछ देर में प्रवचन समाप्त हो गया, तब लोगों ने बुद्ध को प्रणाम किया और अपने अपने घर को चल पड़े. पर एक युवक वहां पर ही बैठा रह गया. बुद्ध की नज़र उस युवक पर पड़ी तो वे पुछ बैठे क्या बात है ? कोई जिज्ञासा है क्या? युवक बुद्ध के पास गया और प्रणाम करके बोला, प्रभु, बहुत उलझन में हो. जितना इस बारे में सोचता हूं उतना ही उलझ जाता हूं. कैसी उलझन है बातस? बुद्ध ने प्रश्न किया, युवक हाथ जोड़कर बोला, प्रभु, यह संसार कितना विशाल है? संसार में लाखों करोड़ों लोग निवास करते हैं, उनमें भी एक से बढ़कर एक विद्वान, कलाकार, योद्धा ऐसे में उन सब के बीच में जैसे सामान्य प्राणी का क्या मूल्य है? युवक की बात सुनकर बुद्ध मुस्कुरा दिए, वे बोले, तुम्हारी जिज्ञासा का उत्तर मिल जाएगा, पर इसमें थोड़ा सा समय लगेगा. क्या तब तक मेरा एक छोटा सा काम कर सकते हो? प्रभु, यह तो मेरे लिए गर्व का विषय है कि मैं आपके काम आ सकूं. युवक ने पुनः अपने हाथ जोड़ दिए और कहा आप आदेश करें. रघुवध ने युवक को एक चमकीला पत्थर देते हुए कहा. तुम्हें इस पत्थर का मूल्य पता करना है, पर ध्यान रहे, इसे बेचना नहीं है. सिर्फ इसका मूल्य पता करना है, जैसी आज्ञा प्रभु. ऐसा कहते हुए युवक ने बुद्ध से वह पत्थर ले लिया. उसने एक बार फिर से उन्हें प्रणाम किया और बाज़ार की ओर चल पड़ा. बाज़ार वहां से ज़्यादा दूर नहीं था. युवक थोड़ी देर में वहां पहुंच गया, वह सुबह का समय था. इसलिए बाज़ार अभी ठीक से लगा नहीं था. वहां पर एक का दुख का दुकानदार ही थे. युवक ने जिज्ञासावश इधर उधर नज़र दौड़ाई. उसे एक पेड़ के नीचे एक दुकानदार नज़र आया. वह आम बेच रहा था. युवक उस दुकानदार के पास पहुंचा और उसे पत्थर दिखाते हुए बोला क्या आप इस पत्थर की कीमत बता सकते हैं? दुकानदार एक चालाक व्यक्ति था, पत्थर की चमक देखकर वह समझ गया कि अवश्य ही यह कोई कीमती पत्थर है. वह बनावटी आवाज़ में बोला, देखने में तो कुछ खास नहीं लगता, पर मैं इसके बदले दशाम दे सकता हूं. दुकानदार की बात सुनकर युवक को हल्का सा क्रोध आ गया, वह मन ही मन बताया, यह आदमी मुझे बेवकूफ समझता है. इतना सुंदर पत्थर और इसका मूल्य सिर्फ दशा अवश्य ही यह झूठ बोल रहा है युवक को चुप देखकर दुकानदार बोल उठा क्या कहते हो निकालू आम, पर युवक ने दुकानदार को कोई जवाब नहीं दिया, मैं चुपचाप आगे बढ़ गया सामने एक सब्ज़ी वाला अपनी दुकान सजा रहा था. युवक उसके पास पहुंचा और उसे पत्थर दिखाते हुए उसका मूल्य पुछा उस पत्थर को देखकर सब्ज़ी वाले की आंखें खुशी से चमक उठी, वह मन ही मन सोचने लगा. यह पत्थर तो बहुत कीमती जान पड़ता है. अगर यह मुझे मिल जाए तो मजा ही आ जाए. क्या हुआ भाई? कहां खो गए? युवक ने दुकानदार की तंदरा थोड़ी सब्ज़ी वाला चौकता हुआ बोला, कुछ नहीं, कुछ नहीं, मैं तो बस मन ही मन इसकी कीमत की गणना कर रहा था, वैसे मैं इस पत्थर के बदले एक बोरी आलू दे सकता हूँ. सब्ज़ी वाले के चेहरे की कुटिलता देखकर युवक समझ गया कि यह दुकानदार भी मुझे मूर्ख बना रहा है. मुझे किसी और से इसका मूल्य पता करना चाहिए. यह सोचता हुआ युवक आगे बढ़ गया. सब्ज़ी वाले दुकानदार ने युवक को पीछे से आवाज़ लगाई, क्या हुआ भाई? अगर आपको यह मूल्य कम लग रहा है तो बताएं तो सही मैं इसे बढ़ा दूंगा पर युवक ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया. वह अब इधर उधर किसी ऐसे व्यक्ति को खोजने लगा जो जानकार हो और उस पत्थर की सही मूल्य बता सके. युवक को लग रहा था कि अवश्य ही यह कोई कीमती पत्थर है. शायद कोई जौहरी इसका सही मूल्य बता सके. यह सोचता हुआ युवक एक जौहरी की दुकान पर पहुंचा. जौहरी अपनी दुकान को अभी खोल ही रहा था. उसने युवक को अपनी दुकान की ओर आते हुए दूर से देख लिया था. साथ ही उसने युवक का हुलिया देखकर यह भी भाप लिया था कि यह कोई गरीब व्यक्ति है जो संभवत कोई गहना बेचने आया होगा. जौहरी ने हाथ जोड़कर युवक को नमस्कार किया और मुस्कुरा कर पुछा, बताए महोदय, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं. युवक ने बुद्ध का दिया पत्थर अपनी हथेली पर रख दिया और बोला इसका मूल्य पता करना था पत्थर को देखते ही जोहरियों से पहचान गया कि यह बेशकीमती रूपी पत्थर है, जो किस्मत वाले को मिलता है. वह बोला, पत्थर मुझे दे दो और मुझसे एक रुपए यह ले लो. कहते हुए जौहरी ने पत्थर लेने के लिए अपना दाहिना हाथ बढ़ाया. पर तब तक युवक ने पत्थर को अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया था. उसे पत्थर के मूल्य का अंदाज़ा हो गया था इसलिए वह बुद्ध के पास जाने के लिए मुड़ गया. जौहरी ने उसे पीछे से आवाज़ लगाई अरेरू को तो भाई मैं इसके पचास लाख दे सकता हूं लेकिन युवक को वह पत्थर बेचना तो था नहीं इसलिए वह रुका नहीं और दुकान के बाहर आ गया पर जौहरी भी कम चालाक नहीं था. वह उस अनमोल पत्थर को किसी भी कीमत पर अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था. वह दौड़ कर उसके आगे आ गया. और हाथ जोड़ कर बोला, तुम ये पत्थर मुझे दे दो. मैं इसके बदले एक करोड़ देने को तैयार हूं. युवक को जौहरी की बातों में अब कोई रुचि नहीं रह गई थी, वह जल्द से जल्द बुद्ध के पास पहुंच जाना चाहता था. इसलिए ना तो वह रुका और ना ही उसने जौहरी की बात का कोई जवाब दिया. वह तेज तेज कदमों से बुद्ध के आश्रम की ओर चल पड़ा. जौहरी ने पीछे से आवाज़ लगाई, यह अत्यंत मूल्यवान पत्थर है, अनमोल है. तुम जितने पैसे कहोगे मैं दे दूंगा. यह सुनकर वह युवक परेशान हो गया. उसे लगा कि कहीं पत्थर के लालच में जौहरी उसे पकड़कर जबरदस्ती न करने लगे, इसलिए वह तेजी से आश्रम की ओर दौड़ पड़ा. युवक जब बुद्ध के पास पहुंचा तो वह बुरी तरह से हांफ रहा था. उसे देखकर बुद्ध मुस्कुरा दिए. फिर भी उन्होंने अपने चेहरे से कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया, वे बोले, क्या बात है बस? तुम कुछ डरे हुए से लग रहे हो? युवक ने बुद्ध को प्रणाम किया और सारी बात कह सुनाई. साथ ही उसने वह पत्थर भी उन्हें वापस कर दिया. बुद्ध बोले, आम वाले ने इसका मूल्यता साम बताया. आलू वाले ने एक बोरी आलू और जौहरी ने बताया कि यह अनमोल है. इस पत्थर के गुण जिसने जितने समझें उसने इसका मूल्य उसी हिसाब से लगाया. ऐसे ही यह जीवन है. प्रत्येक व्यक्ति खान से निकले हुए एक हीरे के समान है जिसे अभी तराशा नहीं गया है. जैसे जैसे समय की धार व्यक्ति को तराशती जाती है, व्यक्ति की कीमत बढ़ती जाती है. यह दुनिया व्यक्ति को जितना पहचान पाती है, उसे उतनी ही महत्ता देती है. कहते हुए बुद्ध एक क्षण के लिए रुके फिर बोले, किन्तु आदमी और हीरे में अंतर यह है हीरे को कोई दूसरा तराशना है और व्यक्ति को अपने आप को स्वयम ही तराशना पड़ता है. और जिस दिन तुम अपने आप को तलाश लोगे, तुम्हें भी तुम्हारा मूल्य बताने वाला कोई ना कोई जौहरी मिल ही जाएगा. गौतम बुद्ध उस लड़के को यह सीख देना चाहते थे कि जो इंसान अपने मन में खुद के बारे में विचार करता है, वह व्यक्ति उसी के समान बनता जाता है. किसी इंसान को अगर दुनिया की किसी भी चीज़ से सच्चे मन से लगाव हो तो वो इंसान उस चीज़ को प्राप्त कर लेता है. वही जो इंसान अपनी मन छाई चीज़ को प्राप्त करने में असर था उस इंसान ने अपने मन में सच्चे भाव से उस चीज़ को चाहा नहीं होता है वही. दोस्तों गौतम बुद्ध की इस प्रेरणादायक कहानी को आप अपने मित्रों के साथ share ज़रूर कीजिए ताकि उन्हें भी गौतम बुद्ध के असल ज्ञान के बारे में पता चल सके. नामों बूधाए.

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