दोस्तों किसी ने सही बात कही है कि बदन मेरा मिट्टी का है सांसें मेरी उधार हैं घमंड करूं तो किस बात का यहां हम सब तो किराएदार हैं नमस्कार दोस्तों rajib inspired यूट्यूब चैनल में आपका दिल से स्वागत है। ये कहानी एक योद्धा के जीवन से प्रभावित एक मोटिवेशनल स्टोरी है, जो आपको अपनी जिंदगी को देखने का एक नया नजरिया सिखाएगी। बहुत समय पहले की बात है सबल नाम का लड़का पूरे दिन अभ्यास करके सो रहा था तो तो उसे एक रात बुरा सपना आता है जिसमें वह हर रोज की तरह अपने गुरु के आश्रम में तलवारबाजी के मुश्किल दाव पचों का अभ्यास कर रहा था उसका अभ्यास अच्छा चल रहा था लेकिन जैसे ही वह एक ऊंची छलांग लगाकर जमीन में वापस आता है उसका एक पैर टूटकर कांच के टुकड़ों की तरह बिखर जाता है उसकी ऐसी हालत देखकर सभी लोग डर जाते हैं लेकिन एक रहस्यमय आदमी बड़ी शांति से उन टुकड़ों को इकट्ठा करने लगता है जिसने काले रंग के जूते पहने हुए थे सबल घ बराकर नींद से जाग जाता है उस समय रात्रि से सुबह होने वाली थी और वह खुद को शांत करने के लिए बाहर टहलने निकल जाता है कुछ देर चलने के बाद वह एक पुराने घर के बाहर आकर रुक जाता है और उसके बाहर पेड़ के नीचे जाकर बैठ जाता है तभी एक बूढ़ा आदमी उस घर से बाहर निकलता है जिसने बिल्कुल वैसे ही जूते पहन रखे थे जैसे सबल ने अपने सपने में देखे थे सबल उस बूढ़े आदमी से कहता है कि तुम्हारे पैरों में अलग-अलग जूते हैं तो जवाब में वह आदमी कहता है कि इसमें से एक जूता नया है और दूसरा पुराना फिर सबल वहां से उठकर जाने लगता है और वह आदमी वहीं पर बैठ जाता है लेकिन जब अगले ही पल सबल पीछे मुड़कर उस आदमी को देखता है तो वह आदमी उस घर की छत पर पहुंच चुका था जो कि आश्चर्य चकित कर देने वाली बात थी क्योंकि एक बूढ़े आदमी के लिए बिना किसी सहारे के इतनी जल्दी छत पर पहुंच जाना असंभव बात थी सबल उस बूढ़े आदमी से पूछ है कि उसने ऐसा कैसे किया लेकिन वह आदमी रहस्यमय ढंग से चुपचाप उसकी ओर देखता रहता है तो सबल वहां से चला जाता है फिर सबल आश्रम के अभ्यास मैदान में तलवारबाजी का अभ्यास करने जाता है सबल अपने आश्रम का सर्वश्रेष्ठ तलवारबाज था लेकिन वह अपने प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं था वह खुद को दूसरों से बेहतर समझता था इसीलिए वह थोड़ा घमंडी भी था अपने आप को सबसे श्रेष्ठ साबित करने के लिए वह तलवारबाजी पर ऐसे-ऐसे प्रयोग करता था जो कि बहुत ही मुश्किल और खतरनाक थे ऐसे प्रयोग करके वह सर्वश्रेष्ठ तलवारबाज बनना चाहता था क्योंकि तलवारबाजी के क्षेत्र में ऐसे प्रयोग और अभ्यास आज तक किसी ने नहीं किए थे लेकिन उन अभ्यास को वह कर नहीं पा रहा था और बार-बार जमीन पर गिर जाता था उसके गुरु को यह सब जान लेवा सबल का अभ्यास पागलपन लगते थे वह उससे कहते हैं कि तुम एक बेहतरीन योद्धा हो लेकिन तलवार के इन अभ्यास को कर पाना संभव नहीं है क्योंकि इसके लिए असाधारण ताकत अचूक तकनीक और निडरता की जरूरत है और अगर तुमसे जरा सी भी गलती हुई तो तुम बुरी तरह घायल हो सकते हो या फिर तुम्हारी जान भी जा सकती है गुरु की बातें सबल को दुखी कर देती हैं उसे इन विशेष अभ्यास को करने के लिए विशेष प्रशिक्षण की जरूरत थी तो वह मदद मांगने वह उस बूढ़े आदमी के पास चला जाता है सबल उससे पूछता है कि आप पल झपकते ही उस ऊंची दीवार पर उस दिन कैसे चढ़ गए थे क्योंकि मैं खुद एक योद्धा हूं और मैं अच्छी तरह यह जानता हूं कि कोई भी योद्धा ऐसा नहीं कर सकता वह आदमी सबल से कहता है उसे समझने के लिए अभी तुम बहुत कमजोर हो और तुम्हें बहुत कुछ सीखने की जरूरत है लेकिन सबल को अपने अभ्यास और ज्ञान पर बहुत घमंड था इसीलिए वह कहता है कि मुझे हर चीज की जानकारी है और तुम मुझसे कोई भी सवाल पूछ सकते हो तो व बूढ़ा आदमी उससे पूछता है कि क्या तुम खुश हो सबल को यह प्रश्न बेमतलब लगता है लेकिन फिर भी वह कहता है कि मेरे पिता के पास बहुत सारा धन है मैं पढ़ाई में भी अच्छा हूं मेरे अच्छे मित्र हैं मैं देखने में भी सुंदर हूं और लड़कियां मुझे पाने के लिए मरती हैं जवाब में वह बूढ़ा आदमी कहता है कि अगर तुम्हारे पास सब कुछ है तो फिर तुम रात में सो क्यों नहीं पाते तुम कल भी रात्रि के अंतिम प्रहर में मेरे पास आए थे और आज भी तुम रात्रि के अंतिम प्रहर में ही आए हो उस बूढ़े व्यक्ति की रहस्यमय बातें सुनकर सबल उसकी तुलना दुनिया के महान दार्शनिकों से करने लगता है और उसे दार्शनिक बाबा के नाम से ही बुलाने लगता है उसके बाद वह आदमी पूछता है कि अगर तुम देश के सर्वश्रेष्ठ तलवारबाज की प्रतियोगिता का हिस्सा ना होते तो तुम क्या कर रहे होते यह प्रश्न सबल को अंदर से हिलाकर रख देता है क्योंकि उसने सर्वश्रेष्ठ तलवारबाज बनने के अलावा और कुछ भी नहीं सोचा था पर उस बूढ़े आदमी ने यह सवाल पूछा क्यों सबल को लगता है कि वह आदमी सनकी है इसीलिए वह घबराकर वहां से चला जाता है और उसे भूलने का प्रयास करने लगता है अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की तरह वह दोस्तों के साथ मजे करता है नशा करता है और लड़कियों को आकर्षित करके उनके साथ समय बिताता है पर इसी दौरान अचानक सिर्फ एक पल के लिए वह दार्शनिक बाबा उसके सामने आ जाता है जो एक इशारा था कि सबल अपनी हरकतें सुधारे तो सबल दार्शनिक बाबा से मिलने उसके पास चला जाता है उन दोनों में थोड़ी बातचीत के बाद ज्योति नाम की लड़की खाना लेकर आती है जो कि उस बूढ़े व्यक्ति की मन्हे बोली बेटी थी फिर वह दोनों खाना खाने लगते हैं तो सबल अपने मुंह में खाना ठोस नहीं लगता है और जल्दी-जल्दी खाने लगता है लेकिन दार्शनिक बाबा कहता है कि तुम्हें अपना खाना आराम से आनंद लेते हुए खाना चाहिए वह कहता है कि तुम्हारे अंदर बहुत सी गलत आदतें हैं और अगर तुम मुझ से प्रशिक्षण लेना चाहते हो तो आज से ही तुम्हें मित्रों के साथ बेमतलब घूमना नशा करना मांस खाना गलत काम बंद करना पड़ेगा लेकिन सबल को अपने प्रशिक्षण और अभ्यास पर बहुत घमंड था तो दार्शनिक बाबा उसे कुछ समय के लिए घुटने मोड़कर खड़े रहने के लिए कहता है जो देखने में तो बहुत आसान लगता है लेकिन थोड़ी ही देर में सबल का सब्र जवाब दे देता है और वह वहीं जमीन पर गिर पड़ता है अपना घमंड टूटने और खुद को बेइज्जत महसूस करने के बाद सबल गुस्से में वहां से जाने लगता है तो दार्शनिक बाबा उसे कहता है कि आत्म अनुभव हमें बहुत सी नई चीजें सिखाता है हमारे अंदर हर सवाल का जवाब है इसीलिए बाहर से सोचना बंद करो और अपने अंदर अपने आत्म अनुभव से उनके जवाब ढूंढो फिर तुम्हें पता चलेगा कि तुम रात को इसलिए नहीं सो पाते क्योंकि तुम अंदर से खाली हो और तुम्हें अपने खालीपन से डर लगता है वह यह भी कहता है कि एक यो के लिए शरीर और दिमाग दोनों पर नियंत्रण होना बेहद जरूरी है और वह सबल को एक योद्धा की तरह प्रशिक्षित करने के लिए मान जाता है अगले दिन सबल जब अपने आश्रम के अभ्यास मैदान में जाता है तो वहां उसे पता चलता है कि उसके मित्र के हाथ में अभ्यास के दौरान गहरी चोट आ गई है और अब उसका मित्र देश की सबसे बड़ी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाएगा इस बात से सबल के मित्र को प्रशिक्षित करने वाला शिक्षक बहुत परेशान था क्योंकि वह तीरंदाजी में सबसे श्रेष्ठ योद्धा था रात को सबल फिर दार्शनिक बाबा से मिलने जाता है उस समय दार्शनिक बाबा बैलगाड़ी के पहिए को सुधार रहे थे वह सबल से एक लोहे का टुकड़ा मांगता है तो सबल जानबूझकर उस लोहे के टुकड़े को बाबा की तरफ तेजी से फेंकता है लेकिन बाबा बिना उसकी ओर देखे बड़ी आसानी से उस लोहे के टुकड़े को अपने हाथों में पकड़ लेता है सबल दोबारा से ऐसा करता है लेकिन दार्शनिक बाबा फिर से उसे बिना देखे पकड़ लेता है दार्शनिक उससे कहता है कि हमारे दिमाग में लाखों बेतुके विचार चलते रहते हैं जो हमारे लक्ष्य को धुंधला बनाकर हमें भटका देते हैं फिर वह सबल को थप्पड़ मारकर उसे उकता है और बदले में मुक्का मारने के लिए कहता है पहले तो सबल शांत रहता है लेकिन जब वह दार्शनिक बाबा पर हमला करता है तो दार्शनिक उसे पलक झपकते ही उसे नीचे गिरा देते हैं और उससे कहता है कि अपने लक्ष्य के अलावा जो कुछ भी तुम्हारे दिमाग में चल रहा है वह सब बेकार है उस कचरे को अपने दिमाग से बाहर निकाल दो और वह उसे अगली सुबह नदी के पुल के ऊपर मिलने बुलाता है अगले दिन जब सबल नदी के पुल पर पहुंचता है तो दार्शनिक उसे धक्का देकर पुल से नीचे गिरा देता है सभल गुस्से में दार्शनिक पर चिल्लाने लगता है तब दार्शनिक कहता है जिस पल तुम नीचे गिर रहे थे उस पल तुम्हारा दिमाग बिल्कुल खाली था अब फिर से उसमें कचरा भर चुका है सबल गुस्से में कहता है कि मेरे दिमाग में कोई कचरा नहीं भरा है तो दार्शनिक सबल के दिमाग पर नियंत्रण करके वह सब देखने लगता है जो उसके दिमाग में चल रहा था फिर वह कहता है कि अगर तुम अपना ध्यान इन फिजोल के विचारों में रखोगे तो तुम अपने वर्तमान के पलों को जी नहीं पाओगे और जब तुम अपना सारा ध्यान वर्तमान के पलों में रखोगे तब तुम्हें पता चलेगा कि तुम क्या कर सकते हो और इतने अच्छे से कर सकते हो सबल को चोट लगने के बाद तीरंदाजी सिखाने वाला शिक्षक सभी छात्रों की परीक्षा ले रहा था इस दौरान सबल दार्शनिक के सिखाए तरीके से अपने ध्यान को एकाग्र करने में सफल हो जाता है और पूरी एकाग्रता के साथ तीरंदाजी का बेहतरीन प्रदर्शन करके दिखाता है जो कि शायद उसके मित्र से भी बेहतर था सभी लोग ऐसे प्रदर्शन को देखकर हैरान रह जाते हैं फिर उस रात दार्शनिक को पूरी बात बताता है वह खुश था और उसे अपने प्रदर्शन पर नाज था क्योंकि दूसरे खिलाड़ी योद्धा उससे जलने लगे थे लेकिन दार्शनिक को उसकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी वह कहता है कि तुम अभी भी अतीत में जी रहे हो और तुम्हें अपने प्रदर्शन पर घमंड भी है इसका मतलब अभी तुम कुछ भी नहीं सीखे इतना कहकर वह उसे घर जाने के लिए कहता है और आज रात उसे कुछ भी सिखाने से मना कर देता है लेकिन यहां कुछ अजीब होता है सबल वहां छुपकर सुबह होने का इंतजार करता है और सुबह होते ही दार्शनिक का पीछा करने लगता है दार्शनिक सांभर के अभ्यास मैदान में चला जाता है और जाकर एक ऊंचे स्थान में बैठ जाता है सबल दार्शनिक के बगल में जाकर बैठता है तो वह महसूस करता है कि वह सभी खिलाड़ी योद्धाओं के दिमाग को पढ़ पा रहा है वह उनके दिमाग में चल रही सभी बातों को सुन सकता है उसे हैरानी तो तब होती है जब सबल स्वयं को उस अभ्यास मैदान में आते हुए देखता है यह देखकर वह अपनी जगह से नीचे गिर जाता है फिर उसे पता चलता है कि यह सब तो उसका भ्रम है ना तो सुबह हुई थी और ना ही उसने दार्शनिक का पीछा किया था यह तो दार्शनिक था जो उसके दिमाग से खेल रहा था दार्शनिक उससे कहता है कि अभी तो तुम्हें बहुत कुछ सीखना बाकी है लेकिन सबल बुरी तरह से डर चुका था तो वह घबराकर वहां से चला जाता है इस घटना का सबल पर उल्टा असर पड़ता है उसका आत्मविश्वास नीचे गिरने लगा था जो उसके साथी योद्धा भी महसूस करते हैं और उसका शिक्षक भी क्योंकि उसका प्रदर्शन कमजोर पड़ने लगा था अगले दिन वह दार्शनिक के घर के बाहर ज्योति को देखता है जो कि दार्शनिक के लिए खाना लेकर आई थी वह उससे कहता है कि मुझे लगा था कि दार्शनिक के तरीकों से मैं एक बेहतर योद्धा बन सकता हूं लेकिन मेरे साथ बिल्कुल उल्टा हो रहा है फिर दार्शनिक सबल से वह सारे काम करवाता है जो आज से पहले उसने कभी नहीं किए थे जैसे कि कचरा साफ करना गंदगी साफ करना कपड़े धोना और लोगों की मदद करना दोस्तों के साथ घूमना और गप्पे मारना बंद मांस खाना बंद सबल यह सब कर तो रहा था लेकिन उसे यह सब बेमतलब लग रहा था उसका प्रदर्शन सुधरने की बजाय दिन प्रतिदिन खराब होता जा रहा था क्योंकि वह दार्शनिक की शिक्षाओं को समझ नहीं पा रहा था और एक दिन तंग आकर वह दार्शनिक से झगड़ने लगता है वह कहता है कि गंदगी साफ करके मैं कौन सा योद्धा बन सकता हूं लेकिन दार्शनिक कहता है कि मैं तुम्हें किसी भी स्थिति में ध्यान करना सिखा रहा था और इससे तुम्हारा घमंड और बुरी आदतें कम हो जाएंगी लेकिन सबल का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था वह कहता है कि तुमने पहले दिन मुझसे पूछा था कि क्या मैं खुश हूं तो आज मैं तुमसे पूछता हूं कि क्या तुम इस खंडहर घर में खुश हो असल में सबल को लगता है कि दार्शनिक जिंदगी से हारा हुआ व्यक्ति है जो अपनी जिंदगी में सफल नहीं हो पाया है और उसकी रहस्यमई बातें सुनकर वह गलती से उसके चक्कर में फंस गया है दार्शनिक उसे अपनी भावनाओं पर काबू करने के लिए कहता है लेकिन सबल तो उसकी एक भी सुनने को तैयार नहीं था और गुस्से में वह दार्शनिक से कहता है कि अपनी खुशी में खुद तलाश लूंगा और अपना प्रशिक्षण छोड़कर वहां से चला जाता है अफसोस सबल यह समझ नहीं पाया कि दार्शनिक उसे निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करना सिखा रहा था जिससे उसका घमंड कम हो सकता था खैर सबल ने अपनी पुरानी दिनचर्या को वापस अपना लिया था जैसे नशा करना मांस खाना दोस्तों के साथ बे बजाए का समय बर्बाद करना लड़कियों को आकर्षित करके उनके साथ समय बिताना और दूसरों से श्रेष्ठ दिखने के लिए जानलेवा अभ्यास करना एक दिन ऐसे ही जब वह खतरनाक अभ्यास कर रहा था तब ऊंचाई से गिरने पर उसका पैर बुरी तरह घायल हो जाता है इलाज के दौरान उसे पता चलता है कि उसके बाहने पैर की हड्डी सिर्फ टूटी नहीं है बल्कि चकनाचूर हो गई है जिसमें अलग-अलग 15 दरारें पड़ चुकी हैं चिकित्सक उससे कहते हैं कि अगर तुम अपना ठीक से ध्यान रखोगे तो अगले कुछ महीनों में तुम चलने लगोगे सिर्फ चलने सबल को पता चल चुका था कि उसका सर्वश्रेष्ठ तलवारबाज बनना अब लगभग असंभव हो चुका है क्योंकि उसे चलने के लिए भी बैसाखी का सहारा लेना पड़ता था और उसका प्रशिक्षण भी पूरी तरह से बंद हो चुका था टांग टूटने के साथ ही अब उसका घमंड भी टूट चुका का था फिर एक दिन ज्योति उससे मिलती है उसे सबल की चिंता हो रही थी क्योंकि देश की सबसे बड़ी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का उस का सपना टूट चुका था वह दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह से समझते थे और वह एक दूसरे को पसंद भी करने लगे थे साब अपने सपने को यूं ही टूटता हुआ नहीं देखना चाहता था इसीलिए वह अपने शिक्षक से मिलता है और कहता है कि मैं अभी की छोटी-छोटी प्रतियोगिताओं में तो हिस्सा नहीं ले पाऊंगा लेकिन 10 महीने बाद योद्धाओं के चुनाव की जो अंतिम प्रतियोगिता होगी मैं उसमें जरूर हिस्सा लूंगा जिसके लिए उसने प्रतियोगिता कराने वाली समिति को अपना आग्रह पत्र भी भेज दिया है लेकिन शिक्षक को उसकी हालत देखकर लगता है कि सबल अब कभी भी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाएगा क्योंकि उसके पैर की हड्डियां टूटी हुई हैं और अब उसका प्रशिक्षण भी बंद हो चुका है अपने सपने को टूटता हुआ देखकर सबल गुस्से से भर जाता है और घर जाकर तोड़फोड़ करने लगता है यह द्वार उसकी जिंदगी का सबसे मुश्किल दौर था उसका सब कुछ बर्बाद हो चुका था अब उसके जिंदा रहने का कोई मतलब नहीं था इसीलिए अपनी जिंदगी खत्म करने के लिए वह एक ऊंची पहाड़ी पर चढ़ जाता है इससे पहले कि वह नीचे कूद पाता वहां कुछ अजीब होने लगता है उसे एक इंसान नजर आता है जो कोई और नहीं बल्कि उसी की बुरी परछाई थी वह परछाई उसके घमंड उसके गुस्से उसके डर उसके संदेह और उसके अंदर चल रही उथल-पुथल को दर्शाती है वह कोई और नहीं बल्कि उसी के अंदर का शैतान था जो सबल को नीचे कूदने के लिए उकसा रहा था यहां सबल समझ जाता है कि अगर वह अपने अंदर की सभी बुराइयों को खत्म कर देगा तो उसके अंदर शांति आ जाएगी तभी वह शैतान नीचे गिरकर हमेशा के लिए खत्म हो जाता है लेकिन यह सब तो बस उसका एक सपना था वह शैतान तो अभी भी उसके अंदर ही था उसने सपने के जरिए अपनी जिंदगी की सच्चाई को देखा था तो मदद मांगने वह उस दार्शनिक के पास चला जाता है सबल दार्शनिक के पास जाकर रोने लगता है दार्शनिक उससे कहता है कि हर चीज का एक मकसद होता है अब तुम्हें अपने सवालों के जवाब अपने अंदर से ही ढूंढने पड़ेंगे और जब तक तुम्हें अपने अंदर से कोई खास जवाब नहीं मिलता तब तक तुम उस पेड़ के नीचे बैठे रहो सबल पेड़ के नीचे बैठकर सोचने लगता है उसके पास समय तो बहुत था लेकिन वह क्या सोचे उसे यह पता नहीं था वह बार-बार अपने नए जवाब के साथ दार्शनिक से मिलता लेकिन हर बार दार्शनिक उसके जवाब से संतुष्ट नहीं होता था और उसे वापस भेज देता था फिर सारी रात सोचने के बाद जब सुबह वह एक नई शादीशुदा जोड़े को देखता है तो उसे अपना जवाब मिल जाता है फिर सबल दार्शनिक के पास जाता है और कहता है कि हमारी जिंदगी का एक-एक पल बहुत खास है हमें अपनी जिंदगी की कद्र करनी चाहिए उसका यह जवाब सुनकर दार्शनिक खुश हो जाता है सबल को अपनी जिंदगी की कीमत पता चल चुकी थी अब ऊंचाई से कूदने के विचार उसके दिमाग में नहीं आएंगे दार्शनिक के साथ रहते हुए वह बहुत सी नई बातें सीखता है दार्शनिक उसके अंदर फिर से जीने की आशा भरता है और अपनी जिंदगी फिर से शुरू करने के लिए उसे तैयार करता है फिर एक दिन सबल अपने मित्रों से मिलता है और अतीत में अपने बुरे व्यवहार के लिए उनसे माफी मांगता है उसके मित्र सबल का यह रूप देखकर हैरान रह जाते हैं दार्शनिक के विचारों ने सबल को पूरी तरह से बदल दिया था और एक दिन सबल दार्शनिक से कहता है कि वह उसी की तरह लोगों के निस्वार्थ भाव से सेवा करने के लिए तैयार है लेकिन दार्शनिक उसे उसकी तलवारबाजी का प्रशिक्षण फिर से शुरू करने के लिए कहता है पर सबल उससे सहमत नहीं होता वह कहता है कि मेरे पैर की हड्डी टूटी हुई है मैं यह नहीं कर सकता दार्शनिक कहता है कि एक योद्धा कभी भी अपनी जीत या श्रेष्ठता की चिंता नहीं करता उसे जो काम सबसे प्यारा है वह उसे करता रहेगा चाहे उसमें उसकी जान ही क्यों ना चली जाए फिर दार्शनिक उसे अभ्यास के लिए एक छोटे से मैदान में ले जाता है जिस उसने तब तैयार किया था जब सबल घायल होकर बिस्तर में पड़ा था अपने पैर में 15 चोटें होने के बाद भी सबल पूरी मेहनत और लगन से अभ्यास करता है और खुद को आने वाली प्रतियोगिता के लिए तैयार करता है और एक दिन जब वह अभ्यास के लिए अपने पुराने आश्रम में जाता है तो उसे देखकर उसके साथी योद्धा और शिक्षक हैरान रह जाते हैं लेकिन सबल की परेशानी तो तब बढ़ती है जब उसका शिक्षक उसे एक चिट्ठी देता है प्रतियोगिता आयोजित कराने वाली समिति ने सबल की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए मना कर दिया था समिति ने सबल के चिकित्सकों से बात की उन्होंने सबल के शिक्षक से भी पूछा लेकिन शिक्षक ने सबल को अपने घमंड में आकर जानलेवा अभ्यास करते हुए देखा था उसे लगता था कि सबल इस प्रतियोगिता के लिए पागलपन की किसी भी हद तक जा सकता है जो एक दिन खुद को ही मार डालेगा इसीलिए उसने साब की हिस्सेदारी का समर्थन नहीं किया अपने मंजिल के इतने करीब आकर एक बार फिर से उसका सपना टूट जाता है दार्शनिक उससे कहता है कि कोई भी असहमति पत्र तुम्हें रोक नहीं सकता तुम वह करते रहो जो तुम्हें अच्छा लगता है लेकिन सबल कहता है कि मेरा लक्ष्य सिर्फ अभ्यास करना नहीं बल्कि देश की सबसे बड़ी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतना है दार्शनिक कहता है कि स्वर्ण पदक जीतना सिर्फ एक लालच है अगर वह मिल भी जाए तो क्या जब तक तुम अंदर से खुश नहीं हो कोई भी बाहरी चीज तुम्हें खुश नहीं दे सकती दार्शनिक उसे अपनी भावनाओं पर काबू करने के लिए कहता है लेकिन सबल बहुत परेशान था वह गुस्से में आकर दार्शनिक से कहता है कि मैं अपना सब कुछ छोड़ने के लिए तैयार था लेकिन तुमने मुझे फिर से प्रशिक्षण के लिए कहा वह काफी हताश हो चुका था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था तो अपने अंदर से जवाब ढूंढने के लिए वह उस पेड़ के नीचे बैठ जाता है दार्शनिक उसकी तड़फ को देखता है तो उसे कल सुबह अपने साथ एक पहाड़ के ऊपर चलने के लिए कहता है जहां कोई खास चीज है फिर अगली सुबह सबल बुरी तरह थका देने वाला लंबा सफर तय करता है दार्शनिक उसके आगे की तरफ था और पीछे पीछे सबल जब वह पहाड़ी की छोटी पर पहुंचते हैं तो सबल दार्शनिक से पूछता है कि बताओ आप मुझे क्या दिखाना चाहते थे यह पहाड़ यह नजारा या फिर कुछ और तो दार्शनिक उसके पैर के पास पड़े एक पत्थर की ओर इशारा करता है और कहता है कि मैं तो तुम्हें यह पत्थर दिखाने के लिए यहां लाया हूं इतना सुनने के बाद सबल निराश हो जाता है वह कहता है कि आधे दिन का इतना लंबा सफर तय करके हम यहां इस मामूली पत्थर को देखने आए हैं फिर उसे एहसास होता है कि दार्शनिक जरूर उसे कुछ समझाना चाहता है थोड़ी देर सोचने के बाद वह समझ जाता है कि जब तक उसे मंजिल के बारे में पता नहीं था तब तक वह अपने सफर का आनंद ले रहा था और वह खुश था लेकिन जैसे ही वह मंजिल तक पहुंच गया उस खुशी खत्म हो गई क्योंकि जो खुशी सफर में है वह मंजिल को पाने में नहीं सबल यह भी समझ चुका था कि उसका लक्ष्य हासिल करने का सपना भी इस पत्थर की तरह ही है जिसे हासिल करने या ना करने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि असली खुशी तो सफर के दौरान है सबल अब समाज सुका था कि अब उसे क्या करना है वे दोनों पहाड़ी से वापस आते हैं और सबल अब अपने सफर का आनंद लेते हुए वह बिना किसी हार जीत की चिंता किए अभ्यास के मैदान में अभ्यास करने लगता है उसका बेहतरीन प्रदर्शन अभ्यास देखकर सभी हैरान हो जाते हैं और उसका शिक्षक उसे अंतिम चुनावी प्रतियोगिता में ले जाने के लिए मान जाता है सबल अपने साथ दार्शनिक को भी ले जाना चाहता था लेकिन जब वह उस पुराने घर में पहुंचता है तो उसे पता चलता है कि दार्शनिक वहां से हमेशा के लिए जा चुका है शायद दार्शनिक अपना काम पूरा कर चुका था फिर अंतिम चुनावी प्रतियोगिता में सबल अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है उसका अपने दिमाग पर पूरा नियंत्रण था उसे प्रतियोगिता जीतने का लालच या डर नहीं था वह तो बस इस पल का आनंद ले रहा था इतनी भयंकर दुर्घटना के बाद भी उसका ऐसा श्रेष्ठ प्रदर्शन देखकर सभी लोग बहुत ज्यादा हैरान थे इसके बाद सबल ने अंतिम प्रतियोगिता में देश के सबसे बड़े योद्धा का किताब जीता और उसके बाद उसने ज्योति के साथ शादी भी कर ली बाद में सबल ने अपनी किताबों और बात के माध्यम से दार्शनिक के विचारों को जन समूह तक पहुंचाने का प्रयास किया |
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अप्रैल 05, 2024
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