शरीर में बल बढ़ाने का रहस्य: बौद्ध की कहानी


 

अपनी जिंदगी खुशी से जियो, किसी भी बात की कोई परेशानी मत लो, अपने हालात से कभी मत डरो, हर जिंदगी के पल-पल का मजा लेते हुए जिंदगी जियो, लेकिन इस वीडियो में हम डर को पूरी तरह से खत्म करने का एक रहस्य आपको बताएंगे तो बिना देर किए चलिए उन कहानियों की शुरुआत करते हैं, पहली कहानी मन के सब डर काल्पनिक है, एक बार एक व्यक्ति गौतम बुद्ध के आश्रम में रहने आया, आश्रम की शांति में दो दिन बीत जाने के साथ सन्यासी की ओर आ रहा था, जब वे उपदेश स्थल के बाद वह बुद्ध के पास जाता है और कहता है, बुद्ध मेरे मन में कुछ प्रश्न उठ रहे हैं, मैं उनका उत्तर जानने के लिए यहां आया हूं, बुद्ध ने कहा, पूछो, आपका प्रश्न क्या है, उस आदमी ने कहा, बुद्ध, मैं अपने जीवन से बिल्कुल भी खुश नहीं हूं, दुखों और परेशानियों के पहाड़ ने मेरे जीवन को नर्क बना दिया है, मेरे जीवन में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है, मैं जानना चाहता हूं कि मेरे साथ यह सब क्यों हो रहा है, मैं इतना बदकिस्मत क्यों हूं? बुद्ध ने कहा, सबसे पहले तो मुझे बताओ कि इसका कारण क्या है? आपके दुहक के लिए, वे कौन सी बातें हैं, जिनके कारण आप इतने परेशान और चिंतित हो गए? बुद्ध के प्रश्न पर कुछ देर सोचने के बाद उस व्यक्ति ने कहा, यह कैसा प्रश्न है? मैंने आपसे एक प्रश्न पूछा और आप उत्तर देने के बजाय पूछ रहे हैं. बुद्ध उस व्यक्ति की बात सुनकर मुस्कुराए, यदि तुम अपने दुह का कारण नहीं जानते हो तो तुम मुझसे यह उम्मीद कैसे कर सकते हो कि मैं तुम्हारे दुहक का कारण जान पाऊंगा? व्यक्ति ने कहा, बुध, लेकिन लोग कहते हैं कि आप भगवान हैं, आप सब कुछ जानते हैं, आप लोगों के मन को पढ़ते हैं, तब आपको मेरे दुहा का कारण पता चल जाएगा. बुद्ध हल्के से मुस्कुराए और गंभीर स्वर में? बोले, तुम यह सोचकर गलती कर रहे हो कि कोई आएगा और तुम्हें तुम्हारी सभी समस्याओं से बाहर निकाल देगा, लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा, केवल तुम ही हो, जो तुम्हें तुम्हारी परेशानियों से बचा सकते हो, महसूस करें कि आपने आत्म ज्ञान प्राप्त कर लिया है तो आप अपनी समस्या का समाधान कर सकते हैं, मैं भी आपके जैसा हूं, फर्क सिर्फ इतना है कि सब कुछ साफ है, जिस दिन आपके जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी, उसी दिन से आपकी भी समस्या के लिए बुद्ध के पास की जरूरत नहीं पड़ेगी, बुद्ध ने उस व्यक्ति से पूछा, क्या तुमने कभी किसी फूल को ध्यान से देखा है, यह सुनकर वह व्यक्ति आश्चर्य चकित हो गया और बोला, बुद्ध फूल तो एक साधारण सी चीज है, इसे तो सभी ने देखा है, बुद्ध ने कहा, फूल एक कली है, सुबह अंधेरा होता है, दिन के उजाले में फूल बन जाता है, शाम को मुर्झा जाता है, यदि फूल केवल इसी बात की चिंता करता है तो शाम तक उसे मुर्झाकर गिरना ही पड़ता है, वह कभी खेल नहीं पाएगा, इस तरह अगर आप केवल अपने दुखों के बारे में ही सोच'. तो आप कभी खुश नहीं रह पाएंगे, इसलिए मैं आपको बताना चाहता हूं कि आपके जीवन में अभी भी बहुत सी चीजें हैं, जिनके बारे में अगर आप बारीकी से देखें तो आप अभी भी खुश हो सकते हैं, आप उनके बारे में सोचकर मुस्कुरा सकते हैं, आप अंदर से खुश हो सकते हैं, आप अपने जीवन की कमजोरी के बजाय अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ पर ध्यान केंद्रित करें, यदि आप अपने जाता है, जबकि वह अपने शरीर को थका चुका होता है, लेकिन समझने जीवन में खुशी चाहते हैं तो आपको इस शाश्वत नियम का पालन करना होगा, अच्छे पर ध्यान देना होगा और जीवन में सकारात्मक चीजें, मैं तुम्हें सिर्फ रास्ता दिखा सकता हूं, मैं तुम्हें दिखा सकता हूं कि उस रास्ते पर कैसे चलना है, लेकिन तुम्हें उस रास्ते पर चलना होगा, बुद्ध के ऐसे शब्द सुनकर वह आदमी कुछ देर तक जाता है, लेकिन इसके विपरीत जब हम कुछ ऐसा करते हैं जो शांत बैठा रहा, फिर उसने कुछ सोचा और कहा लेकिन बुद्ध, मैं चलता हूं, एक बात समझ नहीं आ रही, क्या मेरा पूरा जीवन एक ही तरीके से हल हो सकता है, बुद्ध ने बहुत धीरे से उत्तर देना शुरू किया, मान लीजिए कि कोई भविष्यवक्ता आपको बताता है कि आज शाम तक आपकी मृत्यु निश्चित है, जानकर आपको उन बातों की चिंता होगी जिनके बारे में आप अभी चिंता कर रहे थे, आपको याद भी नहीं होगा कि किस तरह की परेशानियां हैं और किस बात की चिंता कर रहे हैं, आप उस वक्त सिर्फ उस हकीकत के बारे में सोच रहे होंगे, जिसे लोग मौत कहते हैं, अचानक आपको एहसास होगा कि जिन छोटी-छोटी चीजों को आप उसकी सबसे बड़ी परेशानियां कहते थे, वह कुछ भी नहीं, अचानक आपको लगेगा कि चिंता करना बेकार है, आज शाम तक मैं दुनिया छोड़ने वाला हूं और आप पाएंगे कि आपके पूरे जीवन के वेगक्षण व्यर्थ हो गए, जो आपने चिंता, ईर्ष्या. और व्यर्थ कष्ट में बिताए होंगे, लोग बोलते तो हैं, लेकिन अंदर से कभी स्वीकार नहीं करते कि एक दिन उन्हें भी इस दुनिया से जाना है, उनकी इच्छाएं इतनी प्रबल होती हैं कि वे खुद को अमर मानते हैं, सुख और दोहक दोनों ही स्थाई नहीं है, यह हमारे कार्यों और विचारों से निर्मित होते हैं, वह आदमी जो बुद्ध की बातें सुन रहा था, टोकते हुए बोला, तो आपके कहने का मतलब यह है कि मैं हमेशा सोचता हूं कि मैं मरने वाला हूं, क्या यह सोच मेरी सभी समस्याओं का समाधान कर देगी? नहीं, ऐसा कभी मत सोचिए. आपको बस यह स्वीकार करना होगा कि दुनिया में मेरी उपस्थिति अनिश्चित है, मैं जब तक यहां हूं, एक खुशहाल जीवन जिऊंगा, आपके जीवन में जो भी अच्छी चीजें हो रही हैं, उनके साथ जिएं, वह तुम्हें आंतरिक खुशी और शांति देगी, अपना दिमाग ठीक करो और धीरे-धीरे तुम्हारे जीवन की सभी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी, व्यक्ति के जीवन के अधिकतर दोहक उसकी इच्छा से ही उत्पन्न होते हैं, इसलिए आप अपने मन पर नियंत्रण रखें, यदि आप अपने मन का इलाज एक बच्चे के मन की तरह कर सकते हैं तो आपको आंतरिक शांति महसूस होगी, उस व्यक्ति जाता है, तो उसका मन अंदर ही अंदर सड़ने लगता है ईर्ष्या ने कहा कि आपने मन को नियंत्रित करने की बात कही, आप चंचल मन को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं? बुद्ध ने कहा कि सबसे पहले तुम्हें सुख और दुख के बीच अंतर समझना होगा. आपको सबसे पहले यह जानना होगा कि आपके लिए खंदूशी और दूहक का क्या मतलब है, इसके बाद अभ्यास के द्वारा अपने मन को इस प्रकार तैयार करना है कि आप ना तो खुशी के मौके पर ज्यादा खुश हो और ना ही दुखी होने पर ज्यादा दुखी हो, आपको खुद को पूरी तरह से मध्य में रखने का प्रयास करना होगा, जिसे मैं मध्यम मार्ग कहता हूं, यदि आप अपने जीवन में गहराई से उतरेंगे और यह पता लगाने का प्रयास करेंगे कि क्या चीज आपको खुश करती है और क्यों तो अंत में आपको केवल एक ही उत्तर मिलेगा कि आप सभी दुखों का कारण है, आपकी इच्छा, आसक्ति, इच्छा, यह सब आपके मन द्वारा निर्मित है, इसलिए यदि आप अपने मन पर नियंत्रण कर लेंगे तो आपके सभी दुख समाप्त हो जाएंगे, गौतम बुद्ध ने उस व्यक्ति से कहा, कि यदि आप एक और छोटा सा काम करेंगे तो आप देखेंगे कि आपके जीवन के सभी दुख हमेशा के लिए समाप्त हो जाएंगे, बुद्ध के मुख से ऐसे वचन सुनकर वह व्यक्ति उत्तेजित हो गया और बोला, मुझे उसके लिए क्या करना होगा? बुद्ध के मुख से ऐसे शब्द. कर वह व्यक्ति उत्तेजित हो गया और बोला, मुझे उसके लिए क्या करना होगा? बुद्ध ने कहा, कि तुम अगले दो दिनों तक किसी से बात नहीं करोगे और कागज लेकर आशाराम के एकांत स्थान पर बैठ गए, आपको वहां बैठकर उन दुखों के बारे में सोचना और लिखना है जो आपकी परीक्षा ले रहे हैं और उनका कारण भी लिखना है और दूसरे पेज पर आपको थोड़ी सी खुशी लिखनी है और यह भी लिखना है कि आपको यह खुशी क्यों है? जल्दबाजी करने की कोई जरूरत नहीं है, आपके पास बहुत समय है. आप आराम से सोच सकते हैं, जाओ और सोचो और आराम से लिखो, उस आदमी ने बद्ध को प्रणाम किया और आश्रम के कोने में बैठ गया, दो दिन बाद वह कुछ लेकर बुद्ध के पास वापस आया, उसके हाथ में कागजात, उसे देखकर बुद्ध ने कहा, सबसे पहले तुम कागज से अपना दुख पढ़कर सुनाओ, व्यक्ति ने सबसे पहले अखबार पढ़ना शुरू किया, मेरे परिवार के सदस्य अमीर हैं, लेकिन मैं गरीब हूं और काम करता हूं, मैं अपने काम में अमीर नहीं हूं और मैं अपने काम में सहज हूं और मेरी तुलना दूसरों से की जाती है. व्यक्ति ने आगे पढ़ना शुरू किया, दूसरा मेरे पड़ोस में बहुत से लोगों ने बचत की है, लेकिन मेरे पास बचत के नाम पर कुछ भी नहीं है, इसका पहला कारण यह है कि मैं काम कम जानता हूं, लेकिन खर्च बहुत करता हूं, आज मेरे पास बचत के नाम पर कुछ भी नहीं है, मेरी पत्नी काफी समय से बीमार है और उसकी बीमारी का कारण मैं ही मेरी लापरवाही के कारण, मैं उसे कभी किसी डॉक्टर के पास नहीं ले गया, मैंने इसे भाग्य पर छोड़ दिया, शायद यह मेरी अपमानजनक इच्छा थी कि अगर मैं बीमारी से मर जाऊं तो मैं एक खूबसूरत महिला से शादी. करूंगा, चौथा, मैं मन में फ्री पैसे पाने के बारे में सोचता रहता हूं, परंतु योजना पूरी नहीं होती, मैं दुहक के सागर में डूब जाता हूं, फिर यह दुख मुझसे सहन नहीं होता और इसका कारण मैं ही हूं से जीता हूं, लेकिन ऐसा करने में सक्षम नहीं होने पर देखता रहता हूं, बुद्धि ये मेरे जीवन के सबसे बड़े दुख हैं और गहराई से सोचने के बाद मैंने पाया कि कई उनमें से मेरे कार्यों और मेरे, मेरे विचारों के कारण हुआ, यह सुनने के बाद आपने मुझे खुशी का पेपर पढ़कर सुनाया, पिछले दो दिनों में मैंने कुछ भी महसूस किया, वैसा मैंने अपने जीवन में कहीं भी अनुभव नहीं किया, पिछले दो दिनों में मुझे एहसास हुआ कि वास्तविक शांति और आनंद कितना महान है और मैं इसका अनुभव करके बहुत खुश हूं, मेरी खुशी के कारणों की सूची बहुत लंबी है, इसे पढ़ने और समझने में बहुत समय लगेगा, उस व्यक्ति के मुंह से ऐसी बातें सुनकर वह व्यक्ति मुस्कुराया और बोला, सिर्फ आपके लिए ही नहीं, बल्कि हम सभी के लिए कारण एक ही है, वह व्यक्ति अपना बहुत सारा समय बर्बाद करता है, आप दुख का कारण ढूंढ'. ने में लगे हैं, हमारा जीवन भी एक तरह से सुख, शांति और आनंद की तिजोरी है, बुद्ध ने उस व्यक्ति से कहा कि खुशी के सभी कारणों को साझा करने की जरूरत नहीं है, तुम उनमें से कुछ का पाठ कर सकते हो, वह व्यक्ति बड़ी मुस्कुराहट के साथ पढ़ने लगा, पहली खुशी क्योंकि मैं जीवित हूं और दुनिया में रह रहा हूं और मैं स्वस्थ हूं, मेरे माता-पिता, एक पत्नी और दो बच्चे हैं, ऐसे ही मेरे पिता के पास कई अनमोल खजाने हैं, जैसे मेरे माता-पिता का प्यार, मेरी पत्नी का प्यार, मेरे बच्चों का प्यार. और एक पिता की खुशी, दूसरा कारण यह है कि मैं खड़ी मेहनत कर सकता हूं, मैं कोई भी काम कर सकता हूं, आपकी आयु में कोई बाधा नहीं आ सकती और आप अपने परिवार की सभी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं, मुझे खुशी है कि मैं एक खुशहाल परिवार बना सकता हूं, मैं अपनी तुलना, अपने भाइयों, अपने पड़ोसियों से करता हूं और आपने कृपा करके मुझे मानवता वाला इंसान बनाया है, सभी बुरी आतों को छोड़कर आप सुखी और खुशहाल जीवन जी सकते हैं और मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी और सौभाग्य की बात यह है कि मुझे एक जगह मिल जाए. और जब तक मैं इस दुनिया में हूं, हमारी इच्छा और आसक्ति ही सभी दुखों का कारण है, मैं खुद को जानने की पूरी कोशिश करूंगा और मैंने कभी नहीं किया, जीवित रहे, अब आप अपने परिवार के पास रह सकते हैं, यह जीवन सबके साथ है, आपके पके जीवन में कोई भी परेशानी आपको घेरने की कोशिश कर सकती है, जीवन अपने आप से कहने के लिए बहुत छोटा है और इस जीवन में आप चिंताओं और दुखों को खुद पर हावी नहीं होने देंगे, शांति से बैठकर उस दुख का कारण जानने का प्रयास करें और यदि मिल जाए तो उसे नष्ट कर दें, इस तरह आप मानसिक शांति और कभी ना खत्म होने वाली खुशी पा सकते हैं दोस्तों आशा करता हूं कि आपको इस कहनी से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा तो दर्शको अब चलिए हमारे दूसरे कहानी की शुरुआत करते हैं दूसरी कहानी चिंता में खुद को बर्बाद मत करो, यह उन दिनों की बात है, जब एक सन्यासी सेब के बाग में अपना समय व्यतीत कर रहे थे, उस समय तक सन्यासी की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल चुकी थी, लोग अपनी चिंताओं और समस्याओं का समाधान खोजने के लिए दूर-दूर से सन्यासी के पास आते थे, ऐसे ही एक दिन जब सन्यासी सेब के जंगल में लोगों को उपदेश दे रहे थे तो एक आदमी अपने 24 से 25 साल के बेटे के पास पहुंचे तो सन्यासी ने उनकी ओर देखा और इशारा किया, के पास बैठने के लिए जब उपदेश समाप्त हो गया और सभी लोग चले गए, तब सन्यासी ने उस व्यक्ति को अपने पास बुलाया और बैठने को कहा, चारों ओर हरियाली थी, मौसम सुहाना था, तरह-तरह के पक्षियों की आवाजें गूंज रही थी, ऐसा नजारा देखकर उस व्यक्ति को अंदर से बहुत शांति महसूस हो रही थी, इसके बाद सन्यासी ने उस व्यक्ति से आने का कारण पूछा, इस पर वह व्यक्ति बोला, हे महात्मा, मैं अपने बेटे को आपसे मिलवाने के लिए दो दिन की लंबी यात्रा कर आया हूं, यह मेरा इकलौता बेटा है और वह वक्त थका रहता है, ऐसा लगता है कि इसमें जान ही नहीं है, इसका स्वभाव भी काफी चिड़चिड़ा हो गया है, अगर हम इसे कुछ भी कहें तो यह हमारी छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जात इसकी देखने की क्षमता भी उम्र से पहले ही कमजोर हो गई है और उसके बाल भी सफेद हो रहे हैं, इतनी कम उम्र में बूढ़ा दिखने लगा है, मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि उसके साथ क्या हो रहा है, हे सन्यासी, मुझे अपने बेटे की बहुत चिंता हो रही है, मैं अपने बेटे को डॉक्टर के पास ले गया तो उन्होंने कुछ दवा दी और कहा, बेटा कम तनाव लो, वह अपने दिमाग पर बहुत अधिक तनाव लेता है, इसीलिए उसकी यह हालत है, लेकिन उनके बहुत समझाने के बाद भी मुझे तनाव का मतलब समझ नहीं आया, मुझे नहीं पता कि तनाव क्या है, इसका कारण क्या है और इसे कैसे दूर किया जाए, मेरे बेटे के मन की, लेकिन सबसे पहले मुझे यह समझना होगा कि तनाव क्या है, इसलिए मैं आपके पास आया हूं, सन्यासी कृपया मेरी समस्या का समाधान करें, यह सुनकर सन्यासी ने उनके बेटे को बहुत ध्यान से देखा, उसके चेहरे को देखा, उसकी आंखों को देखा, फिर उसके हाथों की नाड़ी भी जांची. यह सब अनुष्ठान करने के बाद सन्यासी ने उस व्यक्ति से कहा कि तनाव कोई भी नहीं लेना चाहता लेकिन फिर भी यह तनाव व्यक्ति के दिमाग को दीमक की तरह जकड़ लेता है और व्यक्ति को पता भी नहीं चलता कि वह तनाव में है लेकिन अगर व्यक्ति तनाव के कारणों को अच्छे से समझ ले और तनाव के बारे में एक पैमाना बना ले जिससे उसे पता चल सके कि वह कितना तनाव ग्रस्त है तो वह इस समस्या का समाधान भी ढूंढ सकता है सबसे पहले यह समझ ले कि तनाव क्या है जब भी कोई व्यक्ति काम कर रहा हो लेकिन उसका मन कल्पनाओं में भटक रहा होता है, इसलिए उसके शरीर और दिमाग के बीच एक दूरी बन जाती है, यह दूरी जितनी अधिक होती है, व्यक्ति उतनी ही देर तक बेहोशी की स्थिति में रहता है और शरीर और मन के बीच के इस तनाव को ही तनाव कहा जाता है, आखिर पसंदीदा खेलने के बाद इंसान ऊर्जा और खुशी से क्यों भर वाली बात यह है कि खेलते समय दिमाग और शरीर पूरी तरह से एक साथ खेल में केंद्रित हो. होते हैं, जिससे शरीर और मन के बीच दूरी नहीं रहती और तनाव नहीं आता और मन में कोई तनाव हो तो दूर हो हमें पसंद नहीं है तो हमारा शरीर वह काम तो कर रहा है, लेकिन हमारा मन कहीं दूर कल्पनाओं में भटक रहा है, जिससे शरीर और दिमाग के बीच दूरी पैदा हो जाती है और तनाव पैदा हो जाता है, इसलिए ऐसा करना चाहिए, एक समय में केवल एक ही काम करना चाहिए और अपने शरीर और दिमाग की सारी शक्ति उसी एक काम में लगानी चाहिए. ताकि व्यक्ति के अंदर तनाव पैदा ना हो, सबसे प्रमुख कारणों में से पहला है, अति महत्वाकांक्षी होना, महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात है, लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि उस आदमी का एक लक्ष्य कभी पूरा नहीं होता, उसका एक लक्ष्य पूरा नहीं होता कि वह दूसरे की ओर भागने लगता है, अगर दूसरा पूरा हो जाता है तो फिर तीसरे को और इस प्रकार वह गोल-गोल घूमता रहता है अपने जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, इसीलिए जो व्यक्ति अधिक महत्वाकांक्षी होता है, जो बड़े लक्ष्य निर्धारित करता है, कभी भी वर्तमान में नहीं रह सकता, उसका दिमाग हमेशा भविष्य की योजना बनाने में व्यस्त रहता है, उसका शरीर वर्तमान में रहता है, लेकिन उसका दिमाग भविष्य में रहता है, जिससे इंसान के शरीर के बीच दूरियां पैदा हो जाती हैं और वह तनावपूर्ण जीवन जीने लगता है, सन्यासी के मुख से यह बात सुनकर लड़के ने सन्यासी से कहा कि इसका मतलब है कि हमें लक्ष्य नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि लक्ष्य निर्धारित करना भी महत्वाकांक्षा है, इसी बहाने सन्यासी ने कहा कि जीवन में लक्ष्य रखना कोई गलत बात नहीं है, लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है, जब हम अपना सारा ध्यान उस लक्ष्य को प्राप्त करने के परिणाम पर केंद्रित कर देते हैं, व्यक्ति को वर्तमान में जीना चाहिए, एक लक्ष्य निर्धारित करें और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करते रहें, लेकिन साथ ही आपको यह भी ज्ञान होना चाहिए कि आप अभी भी वर्तमान में जी रहे हैं और वर्तमान सत्य है, सन्यासी ने आगे कहा कि ईर्ष्या तनाव का एक और बड़ा कारण है, जब कोई व्यक्ति ईर्ष्या और ईर्ष्या से भर एक आंतरिक घाव है यानी मन का घाव इंसान के शरीर का घाव तो ठीक हो सकता है लेकिन मन का घाव कभी नहीं भर सकता इसलिए कभी भी दूसरों की उन्नति और खुशी से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, ईर्ष्या तनाव का कारण बनती है, इसके बाद सन्यासी ने तनाव का अगला कारण बताया और कहा कि अरुचिकर काम भी मन में तनाव पैदा करता है, जो काम हमें करना पसंद नहीं है, उस काम में हमारा मन नहीं लग पाएगा, हमारा शरीर वहीं बैठ जाएगा, लेकिन हमारा मन कल्पना की उड़ान भरता है, जिससे शरीर और मन के बीच दूरी पैदा हो जाती है और व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है, इसलिए व्यक्ति को हमेशा अपनी रुचि के अनुसार ही कार्य करना चाहिए. यदि व्यक्ति ने यह तय कर लिया है कि उसे कौन सा काम करना है और वह उस काम को अपने जीवन का लक्ष्य बना लेता है तब वह काम उसके लिए काम नहीं बल्कि खेल बन जाता है लेकिन दोस्तों अपने जुनून को फॉलो करो यह कहना कितना आसान है अपना सच्चा जुनून ढूंढना कितना मुश्किल है क्योंकि आजकल ज्यादातर युवा सेलिब्रिटीज और सोशल मीडिया से प्रभावित हैं वे किसी भी काम को अपना जुनून मानते हैं और फिर कुछ दिनों तक कोशिश करने के बाद उसे बीच में ही छोड़ देते हैं क्योंकि यह उनका जुनून नहीं था. और इस तरह वे अपना कीमती समय और ऊर्जा बर्बाद करते हैं, तनाव का चौथा कारण है दूसरों से अपेक्षा करना. सन्यासी ने उस व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए कहा, एक पिता के रूप में तुम्हें अपने बेटे से बहुत सारी उम्मीदें होंगी कि आपका बेटा बहुत सफल इंसान बने, आपका नाम रोशन करें और जैसा जीवन चाहे वैसा जिए, आपकी हर बात माने, लेकिन क्या आज तक किसी की भी उम्मीदें पूरी हुई हैं? जब भी कोई व्यक्ति दूसरे से कुछ अपेक्षा करने लगता है तो वह अनजाने में तनाव पैदा करना शुरू कर देता है. खुद के लिए जरा सोचिए. अगर आपका बेटा आपके मुताबिक काम नहीं कर रहा है और वह वैसा नहीं बन रहा है, जैसा आप उसे बनाना चाहते हैं तो निश्चित तौर पर तनाव आपके दिमाग पर हावी हो जाएगा, आप तनाव पूर्ण जीवन जीने लगेंगे और इस तनाव में आप इस तरह व्यवहार और बातचीत करेंगे कि आपके अपने बेटे के साथ संबंध बद से बदतर होते चले जाएंगे, इसलिए व्यक्ति को दूसरों से अपनी क्षमता से कम उम्मीदें रखनी चाहिए और अगर आप पूरी तरह से तनाव मुक्त रहना चाहते हैं तो दूसरों से उम्मीद करना बंद कर दें, इसके बाद सन्यासी ने कहा, कि शारीरिक कष्ट भी मनुष्य के तनाव का एक कारण है जब कोई व्यक्ति किसी शारीरिक दर्द से गुजर रहा होता है तो उसका पूरा ध्यान उस दर्द पर होता है और वह सारा दिन बस अपने दर्द के बारे में ही सोचता रहता है जिससे उसका मन दुखद विचारों से भर जाता है और ऐसे में व्यक्ति तनाव ग्रस्त रहने लगता है यह सब सुनकर वह व्यक्ति बोला कि हे सन्यासी शारीरिक कष्ट किसी भी व्यक्ति को हो सकता है तो क्या वह व्यक्ति जीवन भर तनाव में रहेगा इसका उत्तर देते हुए सन्यासी ने कहा कि मनुष्य को यह समझना चाहिए कि हमारा जीवन दुख का आधार है, जैसे-जैसे हमारा जीवन चलता है, बीमारियां वो आती हैं और फिर अंत में मृत्यु आती है, इसलिए बीमारियां मानव जीवन का अभिन्न अंग है, इससे कोई नहीं बच सकता, यह बस किसी के जीवन में समय से पहले आता है और किसी के बाद आता है, लेकिन सबके पास आता है, जब मानव मस्तिष्क इस बात को अच्छी तरह से समझ जाएगा तो तब उसे अपनी बीमारी के बारे में सोचकर ज्यादा तनाव नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह हमारे जीवन का अभिभिन्न अंग है और इसके लिए शारीरिक व्यायाम का अभ्यास करते रहना चाहिए और स्वस्थ जीवन शैली को भी अपने जीवन में जगह देनी चाहिए जिससे उनका शरीर लंबे समय तक स्वस्थ रहकर ठीक से काम कर सके तनाव का अगला कारण है अपनी योजनाओं को समझने के लिए समय ना देना कुछ लोगों के मन में यह विचार घर कर जाता है कि वे बिना सोचे समझे उस पर काम शुरू कर देते हैं और जब उन्हें उस काम में असफलता मिलती है तो वे तनाव से भर जाते हैं क्योंकि उन्होंने उसका काम को शुरू करने से पहले उस काम के बारे में पूरी जानकारी इकट्ठा नहीं की थी, किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले व्यक्ति को उसके अच्छे और बुरे परिणाम के बारे में ठीक से विचार कर लेना चाहिए, व्यक्ति को यह भी अच्छे से सोचना चाहिए कि यदि यह योजना सफल नहीं हुई तो इसके बाद मैं क्या करूंगा, इसलिए व्यक्ति को अपनी योजनाओं को समझने के लिए पूरा समय देना चाहिए, ताकि बाद में वही योजना तनाव पैदा ना कर दे. तनाव का सातवां सबसे बड़ा कारण टाल मटोल है, आज का काम कल पर डाल देना. आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी कि आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है, मनुष्य अपने आलस्य के कारण आज के काम को कल पर टाल देता है और फिर टालना उसकी आदत बन जाती है, टालमटोल करने वाले का काम कभी भी समय पर पूरा नहीं होता है और अगर किसी कारण से हो भी जाता है तो उतना अच्छा नहीं होता जितना हो सकता था और फिर यह बात इंसान के अंदर तनाव पैदा करती है, लेकिन आखिरी समय पर टालना या ना करना एक आदत है, इसलिए ना चाहते हुए भी व्यक्ति बार-बार इस आदत का शिकार हो जाता है, और फिर काम को टालता रहता है और फिर जब काम की समय सीमा नजदीक आ जाती है तो वह उस काम को पूरा करने की कोशिश करता है इसलिए तनाव मुक्त रहने के लिए व्यक्ति को काम को टालने की आदत को छोड़ना होगा और यह तभी संभव है जब लोग काम को समय से पहले पूरा करने का प्रयास करेंगे तनाव का आखिरी और सबसे बड़ा कारण है ज्यादा सोचना लगातार सोचना भी एक बीमारी है और यह उन लोगों में सबसे ज्यादा पाई जाती है जो कल्पनाएं करते हैं जो अतीत की घटनाओं के बारे में सोचते रहते हैं और जो भविष्य के बारे में बेतहाशा अटकलें लगाते हैं, इसलिए व्यक्ति को ज्यादा सोचने की आदत पर अंकुश लगाना चाहिए, उसे जितना हो सके खुद को काम में व्यस्त रखने की कोशिश करनी चाहिए और प्रतिदिन ध्यान के अभ्यास को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं, सन्यासी के मुख से ये सभी बातें सुनकर वह व्यक्ति हाथ जोड़कर बोला, हे सन्यासी, मेरा बेटा अभी सिर्फ 20 साल का है और उसे इतनी समझ भी नहीं है कि वह सभी बातों का पालन कर सके, कृपया तनाव दूर करने का कोई आसान तरीका बताएं, ताकि मेरा बेटा भी उसे अपना सके और तनाव मुक्त रह सके, उस व्यक्ति की यह विनति सुनकर सन्यासी ने कुछ सोचते हुए उत्तर दिया, यदि आप इतनी सारी बातों का पालन नहीं कर सकते तो इसके लिए एक... बहुत ही आसान तरीका है, आप एक समय में एक ही काम करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, आप उस समय जो कर रहे हैं, बस उसी पर ध्यान केंद्रित करें और यदि आपका मन भटकता है तो जैसे ही आपको याद आए, अपना ध्यान उस काम पर लौटा दें, तनाव मुक्त रहने का यह सबसे आसान और अच्छा तरीका है, जब आप खाएं तो केवल खाएं, उसके स्वाद का आनंद लें, उसे महसूस करें, जब आप चलें तो अपना ध्यान केवल चलने पर केंद्रित करें, इससे आपका दिमाग और शरीर दोनों एक ही जगह पर केंद्रित रहेंगे, दोनों के बीच कोई दूरी नहीं रहेगी, जो तनाव का मुख्य कारण है, दोस्तों, आज की युवा पीढ़ी एक ही समय में दो या तीन काम करने की आदि हो गई है, जैसे फोन पर बात करते हुए गाड़ी चलाना, खाना खाते समय टीवी देखना या फोन का इस्तेमाल करना और फिर उनकी शिकायत रहती है कि मैं तनाव में रहता हूं, मेरा मन बेचैन रहता है, मैं चिड़चिड़ा हो गया हूं, जब कोई व्यक्ति एक समय में तीन काम करता है तो यह स्वाभाविक है, तनाव उत्पन्न होना, क्योंकि दिमाग एक समय में एक ही काम पूरे ध्यान से कर सकता है, कभी भी एक ही समय में दो चीजों पर पूरा ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता, इसलिए जहां तक हो सके, एक समय में एक ही काम को पूरे ध्यान से करने की कोशिश करें, दोस्तों, मुझे उम्मीद है कि आपको इस कहानी से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा, तो दर्शकों, अब चलिए हमारे तीसरी कहानी की शुरुआत करते हैं, तीसरी कहानी, दोस्तों, एक बार की बात है, राजा चंद्रसेन के राज्य में एक कंजूस सेठ रहता था, उसके पास धन की कोई कमी ना थी, पर एक पैसा भी जेब से निकालते समय उसकी नानी मर जाती थी, एक बार उसके कुछ मित्रों ने हंसी-हंसी में एक कलाकार से अपना चित्र बनवाने के लिए उसे राजी कर लिया, उसके सामने वह मान तो गया, पर जब चित्रकार उसका चित्र बनाकर लाया तो सेठ की हिम्मत ना पड़ी कि चित्र के मूल्य के रूप में चित्रकार को 100 स्वर्ण मुद्राएं दे दें, वह सेठ भी एक तरह का कलाकार ही था, चित्रकार को आया देखकर सेठ अंदर गया और कुछ ही क्षणों में अपना चेहरा बदलकर बाहर आया, उसने चित्रकार से कहा, तुम्हारा चित्र जरा भी ठीक नहीं बन पड़ा, तुम ही बताओ, क्या यह चेहरा मेरे चेहरे से जरा भी मिलता है, चित्रकार ने देखा, सचमुच चित्र सेठ के चेहरे से जरा भी नहीं मिलता था, तभी सेठ बोला, जब तुम ऐसा चित्र बनाकर लाओगे, जो ठीक मेरी शक्ल से मिलेगा, तभी मैं उसे खरीदूंगा, दूसरे दिन चित्रकार एक और चित्र बनाकर लाया, जो हुबहू सेठ के उस चेहरे से मिलता था, जो सेठ ने पहले दिन बना रखा था, इस बार फिर सेठ ने अपना चेहरा बदल लिया. और चित्रकार के चित्र में कमी निकालने लगा, चित्रकार बड़ा लज्जित हुआ, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस तरह की गलती उसके चित्र में क्यों होती है? अगले दिन वह फिर एक नया चित्र बनाकर ले गया, पर उसके साथ फिर वही हुआ, अब तक उसकी समझ में सेठ की चाल आ चुकी थी, वह जानता था कि यह मक्खी चूस सेठ असल में पैसे नहीं देना चाहता, पर चित्रकार अपनी कई दिनों की मेहनत भी बेकार नहीं जाने देना चाहता था, बहुत सोच विचार कर, चित्रकार माधव के पास पहुंचा और अपनी समस्या उनसे कह सुनाई, कुछ समय सोचने के बाद माधव ने कहा, कल तुम उसके पास एक शीशा लेकर जाओ और कहो कि आपकी बिल्कुल असली तस्वीर लेकर आया हूं, अच्छी तरह मिलाकर देख लीजिए, कहीं कोई अंतर आपको नहीं मिलेगा, बस फिर अपना काम हुआ ही समझो, अगले दिन चित्रकार ने ऐसा ही किया, वह शीशा लेकर सेठ के यहां पहुंचा और उसके सामने रख दिया, लीजिए सेठ जी, आपका बिल्कुल सही चित्र, गलती की इसमें जरा भी गुंजाइश नहीं है, चित्रकार ने अपनी मुस्कुराहट पर काबू पाते हुए कहा, लेकिन यह तो शीशा है, सेठ ने झुंझलाते हुए कहा, आपकी असली सूरत शीशे के अलावा बना भी कौन सकता है? जल्दी से मेरे चित्रों का मूल्य 1000 स्वर्ण मुद्राएं निकालिए. चित्रकार बोला, सेठ समझ गया कि यह सब माधव की सूझबूझ का परिणाम है. उसने तुरंत 1000 स्वर्ण मुद्राएं चित्रकार को दे दी. दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें लोगों को मूर्ख नहीं समझना चाहिए और उन्हें मूर्ख बनाने का प्रयास नहीं करना चाहिए, क्योंकि जब हम दूसरों को मूर्ख बनाने का प्रयास करते हैं, तब असल में हम ही अपने बुने हुए जाले में फंस जाते हैं, लेकिन कभी-कभी जहां अपनी अच्छाई ही हो, उस जगह हमें झूठ जरूर बोलना चाहिए, तो दर्शकों, अब चलिए हमारे चौथे कहानी की शुरुआत करते हैं, चौथी कहानी, वही अब एक और कहानी की शुरुआत कुछ इस प्रकार होती है, एक गांव में एक दिन कुश्ती स्पर्धा का आयोजन किया गया, हर साल की तरह इस साल भी दूर-दूर से बड़े-बड़े पहलवान आए, उन पहलवानों में एक पहलवान ऐसा भी था, जिसे हराना सबके बस की बात नहीं थी, जाने माने पहलवान भी उसके सामने ज्यादा देर टिक नहीं पाते. थे, स्पर्धा शुरू होने से पहले मुखिया जी आए और बोले, भाइयों, इस वर्ष के विजेता को हम ₹ लाख रुपए इनाम में देंगे, इनामी राशि बड़ी थी, पहलावन और भी जोश में भर गए, और मुकाबले के लिए तैयार हो गए, कुश्ती स्पर्धा आरंभ हुई और वही पहलवान सभी को बारी-बारी से चित्त करता रहा, जब हट्टे-कट्टे पहलवान भी उसके सामने टिक ना पाए तो उसका आत्मविश्वास और भी बढ़ गया और उसने वहां मौजूद दर्शकों को भी चुनौती दे डाली, वो बोला, है कोई माई का लाल जो मेरे सामने खड़े होने की भी हिम्मत करें, वही खड़ा एक दुबला पतला व्यक्ति, यह कुश्ती देख रहा था, पहलवान की चुनौती सुन उसने मैदान में उतरने का निर्णय लिया और पहलावन के सामने जाकर खड़ा हो गया, यह देख वह पहलवान उस पर हंसने लग गया और उसके पास जाकर कहा, तू मुझसे लड़ेगा, होश में तो है ना, तब उस दुबले पतले व्यक्ति ने छतुराई से काम लिया और उस पहलवान के कान में कहा, अरे पहलवान जी, मैं कहां आपके सामने टिक पाऊंगा, आप ये कुश्ती हार जाओ, मैं आपको इनाम के सारे पैसे तो दूंगा ही और साथ में तीन लाख रुपए और दूंगा, आप कल मेरे घर आकर ले जाना, आपका क्या है? सब जानते हैं कि आप कितने महान हैं, एक बार हारने से आपकी ख्याति कम थोड़ी ही हो जाएगी, कुश्ती शुरू होती है, पहलवान कुछ देर लड़ने का नाटक. है और फिर हार जाता है, यह देख सभी लोग उसकी खिल्ली उड़ाने लगते हैं और उसे घोर निंदा से गुजरना पड़ता है, अगले दिन वह पहलवान शर्त के पैसे लेने उस दुबले व्यक्ति के घर जाता है और ₹6 लाख मांगता है, तब वह दुबला व्यक्ति बोलता है, भाई किस बात के पैसे? अरे वही जो तुमने, मैं मुझसे देने का वादा किया था, पहलवान आश्चर्य से देखते हुए कहता है, दुबला व्यक्ति हंसते हुए बोला, वह तो मैदान की बात थी, जहां तुम अपने दाव पेंच लगा रहे थे, वहां मैंने अपना लगाया, पर इस बार में दाव पेंच तुम पर भारी पड़े और मैं जीत गया,मित्रों, यह कहानी हमें सीख देती है कि थोड़े से पैसों के लालच में वर्षों के कड़े परिश्रम से कमाई प्रतिष्ठा भी कुछ ही पलों में मिट्टी में मिल जाती है और धन से भी हाथ धोना पड़ता है, अंतः हमें कभी अपने नैतिक मूल्यों से समझौता नहीं करना चाहिए और किसी भी तरह के भ्रष्टाचार से बचकर रहना चाहिए, दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं कि यह कहानी सुनने से आपके जीवन में अच्छे बदलाव आए होंगे, आपको इस वीडियो से क्या सीखने मिला ये कमेंट करके जरूर बताइए और अपने दोस्तों या आपके करीबी इंसान के साथ यह कहानी शेयर करके उन्हें भी इस ज्ञान से परिचित करवाए आपका हर दिन शुभ हो और खुशियों से आपका जीवन भरा रहे धन्यवाद नमो बुद्धाय.

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