जितनी खामोशी से अकेले काम कर सकते हो उतना काम करो. अपना काम अच्छाई और खुशी से करते रहो. खुद का काम स्वयं करते रहो. अकेले रहकर खुद को सुधार यहाँ इस दुनिया में कोई भी तरह नहीं है. ऐसा गौतम बुद्ध ने कई सालों पहले अपने शिष्यों को क्यों कहा कहा था, इसके पीछे की कहानी क्या है? तो इस रहस्यमई कहानी को हम आज के इस video में आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं तो बिना देर किए चलिए video की शुरुआत करते हैं. स्वार्थी यानी कि स्वयम का अर्थ, जो इंसान स्वयम का अर्थ जानना चाहता है, जो खुद को समझना चाहता है क्या वो इंसान आपकी नज़र में गलत है? हम जब भी किसी को स्वार्थी कहते हैं तो उसका मतलब तो यही होता है कि वो आदमी स्वयम का अर्थ समझना चाहता है. तो फिर वो गलत कैसे हुआ? स्वार्थी शब्द दुनिया की नज़र में, समाज की नज़र में एक अलग ही नजरिए से समझा जाता है. अक्सर हम अपने आस पास ऐसे बहस से लोगों को देखते हैं जो स्वभाव से बहुत अच्छे प्रतीत होते हैं, यानी कि सब लोगों की मदद करते हैं सबसे अच्छा व्यवहार रखते हैं लेकिन इसके साथ हमने ये भी देखा होगा कि ऐसे लोग जो स्वभाव के अच्छे होते हैं दूसरों की मदद करते हैं वह दुखी भी ज़्यादा रहते हैं और जो लोग स्वार्थी होते हैं वह फलते फूलते चले जाते हैं तो ऐसे में परमात्मा की सत्ता पर उंगली उठाना निश्चित है, लेकिन अगर यह सत्य है तो हमें कौन सा मार्ग अपनाना चाहिए?
क्या हम भी दूसरों के जैसे वन जाए? पता नहीं आप में से कितने लोग ये मानते हैं कि अच्छे लोग जीवन में बहुत दुखी रहते हैं. लेकिन इसके पीछे का सत्य क्या है? अगर हम इसके पीछे का सत्य नहीं जानेंगे, नहीं पहचानेंगे तो कहीं ना कहीं हमारा अवधि तन मन भी बुराई की तरफ झुक जाएगा. इसीलिए अपने मन में ऐसे विचार पनपने से पहले इस बात की पूरी सच्चाई पूरा निष्कर्ष निकाल लें ताकि भविष्य में आपको अपने अच्छे होने पर पश्चाताप ना हो, दुख ना हो. आज की जो बौद्ध कहानी मैं आपको सुनाने वाला हूँ, उसमें आपको पांच ऐसे तरीके पता चलेंगे, जिसके माध्यम से अगर आप कर्म करते हैं तो आप अच्छे कर्म भी कर पाएंगे और दुखी भी नहीं होंगे. एक गांव में आनंद नाम का एक युवक रहता था उसका भरा पूरा परिवार था उसके दो बच्चे थे उसकी पत्नी थी लेकिन उसके माता पिता इस दुनिया से चल बसे थे इसीलिए पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. बच्चे अपनी पढ़ाई करते थे और उसकी पत्नी अपने घर गृहस्थी के कामों के साथ गाय, भैंस, बकरी इत्यादि का दूध बेचकर अपना घर चलाती थी और आनंद पहाड़ में पत्थर तोड़ने का काम करता था. बहुत ही मेहनत भरा काम था पूरे दिन काम करता तो रात को थक कर घर पर वापस लौटता. लेकिन इतनी मेहनत करने के बाद भी अगर आनंद को गांव का कोई भी आदमी मदद के लिए बुलाता तो आनंद कभी भी मना नहीं करता था. उसके जीवन का एक ही सिद्धांत था. अगर मैं दूसरों की मदद करूंगा तो परमात्मा मेरा साथ देंगे. परमात्मा मेरे साथ कुछ बुरा नहीं होने देंगे.आनंद अपने इस सिद्धान्ति का पालन बहुत ही कड़ाई के साथ करता था. वह इस सिद्धांत पर इतना विश्वास करता था कि अगर कोई बाहर का आदमी उससे मदद मांग लें तो वह अपने घर का काम भी अधूरा छोड़कर उस आदमी की मदद करने के लिए पहुंच जाता था. जिसकी वजह से उसकी पत्नी बहुत परेशान रहती थी वह अक्सर आनंद को समझाने की कोशिश करती थी कि सबसे पहले अपना काम अपने परिवार को देखो दो दो बच्चे हैं हमारे और फिर भी तुम दूसरों के काम करने में लगे रहते हो अरे अपने घर को तो संभालो अपना घर संभाल नहीं रहा दूसरों की मदद करने चले हैं और जब ऐसी ऐसी बातें आनंद के कानों में पड़ती तो उसके हृदय में कांटा चुभने लगता था और उन दोनों में लड़ाई झगड़ा शुरू हो जाता था अक्सर उनके लड़ाई झगड़े का यही सबसे बड़ा कारण होता था लेकिन ना तो आनंद अपने आप को बदल पाया और ना ही उसकी ने उसको समझाना कभी बंद किया. इसी वजह से आए दिन उनके घर में क्लेश होता रहता था. जहां तक उस गांव वालों की बात थी तो वो आनंद के स्वभाव को जानते थे और वो जानबूझकर जो काम आसान भी होता था, जो उनके सामर्थ्य में भी होता था. उस काम के लिए भी वो आनंद को बुलाते थे ताकि उन्हें कम मेहनत करनी पड़े. कहने का अर्थ ये है कि गांव वाले आनंद की इस सृष्टि अचार का फ़ायदा उठाते थे, लाभ उठाते थे और सब पीछे से उसका मज़ाक उड़ाते थे, उसे बेवकूफ कहते थे ऐसे ही समय भी तरह और एक दिन आनंद की पत्नी बहुत ज़्यादा बीमार पड़ गई. आनंद से जो कुछ भी सेवा हो सकती थी, उसने वो सब अपनी पत्नी के लिए किया.
उसने गांव के वैद को बुलाकर अपनी पत्नी की जांच करवाई लेकिन ये रोग उस वैद की पकड़ के बाहर था इसीलिए उस वैद ने कहा कि तुम अपनी पत्नी को नगर में जाकर किसी बड़े वैद को दिखाओ, तो तुम्हारी पत्नी की जान बच सकती है. जल्द से जल्द नगर पहुंचने की व्यवस्था करो, नहीं तो तुम्हारी पत्नी के प्राण संकट में हो जाएंगे. ये सुनकर आनंद के पैरों तले ज़मीन फिसल गई, उसने ये नहीं सोचा था कि उसकी पत्नी के प्राण संकट में है. वो सोच रहा था कि कोई साधारण सा रोग होगा जिसका इलाज हो जाएगा. लेकिन जब उसने वैद की यही बात सुनी तो वह घबरा गया. अब पत्नी को नगर तक कैसे लेकर जाए, क्योंकि उसके पास इतना धन नहीं था, कि वह अपनी पत्नी के लिए घोड़ा गाड़ी करके उसमें अपनी पत्नी को लेटाकर नगर में ले जा सके. उसकी पत्नी की हालत बिल्कुल चलने भी नहीं थी इसलिए उसे नगर पहुंचाने के लिए किसी घोड़ा गाड़ी की ज़रूरत थी संयोग से उसके पड़ोसी धम्मो के पास एक घोड़ा गाड़ी थी वह अक्सर व्यापार के लिए अपनी घोड़ा गाड़ी नगर में लेकर जाया करता था इसीलिए आनंद के मन में विचार आया कि मैं धर्मों की घोड़ा गाड़ी ले सकता हूं मैं धर्मों की इतनी मदद करता हूं कभी उसके काम को नहीं टालता तो वो तो मेरे काम को कभी मना ही नहीं कर सकता. और यही सोचकर वो घोड़ा गाड़ी लेने के लिए धन्य के पास पहुंच जाता है लेकिन धन्य बहुत ही चालाक इंसान था वो बिना किराए के अपनी घोड़ा गाड़ी अपने सगे संबंधियों के लिए भी नहीं ले जाता था तो आनंद की तो दूर की बात रही.
जब आनंद ने उस घोड़ा गाड़ी के बारे में पुछा तो उसने यह कह कर उसका यह काम टाल दिया कि मेरे घोड़े बहुत ज़्यादा बीमार हैं वो शायद बच भी मुश्किल से पाएंगे पाँच दिनों से वो कुछ नहीं खा रहे तो ऐसे में बेचारा घोड़ा गाड़ी लेकर कहा, नगर तक पहुंच पाएगा? हाँ, अगर तुम कुछ धन की व्यवस्था कर सकते हो तो मैं अपने एक मित्र की घोड़ा गाड़ी तुम्हारे लिए मँगवा सकता हूँ, यह सुनकर आनंद परेशान और चिंतित हो गया. क्योंकि उसके पास धन तो था ही नहीं. इसका मतलब उसकी पत्नी बड़े नगर में वैद के पास इलाज के लिए पहुंच ही नहीं पाएगी. उलझन भरे हुए विचार लिए हुए जब आनंद वापस आ रहा तो उसने एक दिल दहलाने देने वाला दृश्य देखा. उसने देखा कि धर्म के घोड़े जो धर्म के अनुसार बीमार थे और कुछ खा भी नहीं रहे थे. वहीं घोड़े गांव का ही एक युवक उसकी बाढ़ से खोलकर बाहर ला रहा था और गाड़ी में उसको जोत रहा था. यह देखकर पहले तो आनंद को कुछ समझ में नहीं आया. उसके बाद जब आनंद ने उस युवक से पुछा तो उसने बताया कि धनु ने यह घोड़ा गाड़ी उसे पर दी है. यह सुनकर आनंद का दिल टूट गया. उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका सबसे अच्छा मित्र धर्म उसके साथ ऐसा कर सकता है हालांकि यह इस बात पर दुखी होने का वक्त नहीं था इसीलिए आनंद वहां से जल्दी से लौट जाता है और गांव के ही एक seat के पास जाकर कुछ धन उधार लेकर धनुष को दे देता है. धनुष अपने मित्र की घोड़ा गाड़ी मंगवा देता है, जिसके बाद वह अपनी पत्नी को वैध के पास नगर में ले जाता है. जब उसकी पत्नी का इलाज चल रहा था तो आनंद यही सोच रहा था कि एक वो दिन था जब धर्म की बेटी बीमार हो गई थी और धर्म यहां पर नहीं था तो मैं पूरी रात वैद जी के पास उसके लिए बैठा रहा था. उसकी देख रेख की थी. उसकी सेवा की थी. इतने दिनों तक धन वो नहीं आया था. तब मैं ही उसके परिवार की देख रेख किया करता था. हाय कैसा दुर्भाग्य है यह? जिसके लिए मैंने इतना कुछ किया. उसने एक घोड़ा गाड़ी देने से मुझे मना कर दिया और वो भी तब जब मेरी पत्नी ज़िंदगी और मौत के साथ खेल रही थी कुछ देर बाद वैद बाहर आकर आनंद को एक बहुत बुरी खबर देता है. वह आनंद को बताता है कि उसकी पता को कर रोग हो चुका है और इसका कोई भी इलाज नहीं है, उसके पास कुछ समय की शेष बचा है, यह सुनकर आनंद दुखी होकर वही ज़मीन पर बैठ गया उसकी पूरी दुनिया उजड़ने वाली थी और उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था. कुछ समय बाद उसकी पत्नी चल बसी और अब दोनों बच की ज़िम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई थी, लेकिन यहां पर आनंद के सारे सिद्धांत टूट चुके थे.
उसके सारे भ्रम खत्म हो चुके थे. अब उसके दिमाग में एक ही बात थी कि अच्छा कर्म करने से परमात्मा साथ नहीं देता बल्कि जो बुरे लोग हैं वो लोग फलते फूलते हैं. और इस बात का मैं सबसे बड़ा गवाह हूं यह विचार अक्सर उसके दिमाग में चलते रहते थे और इसी वजह से उसका मन धीरे धीरे सन्यस्थ हो गया दे दुनिया से दूर हट गया और एक दिन ऐसा भी आया जब वह अपने बच्चों को अपने रिश्तेदारों के पास छोड़कर इस देश दुनिया को त्याग कर एक सन्यासी बने के लिए घर से निकल पड़ा. उसने गांव में किसी को कुछ नहीं बताया. किसी को नहीं पता था कि आनंद अचानक कहां गायब हो गया. संन्यास की दीक्षा लेने के लिए वह एक बौद्ध भिक्षु के पास पहुंचता है. बौद्ध भिक्षु उस समय ध्यान में बैठे हुए थे. ध्यान से बाहर आने के बाद वो बड़े ध्यान से आनंद के चेहरे को देखते हैं और उससे सन्यासी बनने का कारण पूछते हैं. इस पर आनंद उन्हें अपनी पूरी आपबीती सुना देता है और कहता है कि ये महात्मा इस दुनिया से मुझे कुछ भी हासिल नहीं हुआ. मेरा मन इस दुनिया से विरक्त हो चुका है. जब अपने दोस्तों ने ही मेरा साथ नहीं दिया तो इस दुनिया में रहने का क्या मतलब और इसी वजह से मैं सन्यासी बनना चाहता हूं ये सुनने के बाद बौद्ध भिक्षु ने उपदेश देना शुरू किया. उन्होंने कहा कि याद रखना बेटा, जीवन से विरक्त होकर सन्यासी बनना. तुम्हें परम सुख तक कभी नहीं पहुंचा सकता, परमानंद तक कभी नहीं पहुंचा सकता. तुम दुनिया से अपने मन पर एक बोझ लेकर विरक्त हुए हो. तुम दुनिया से परमात्मा की खोज करने के लिए विरक्त नहीं हुए हो. इस भ्रम में कभी मत रहना तुम संसार से विरक्त हुए हो क्योंकि संसार ने तुम्हें धोखा दिया, ऐसा तुम्हें लगता है, इसीलिए तुम परमात्मा पर कभी विश्वास नहीं कर पाओगे और ना ही उन पर अपनी पूर्ण आस्था बना पाओगे इसीलिए सन्यासी होने का भी तुम पूरा लाभ कभी नहीं उठा पाओगे सन्यासी होने का लाभ तब मिलता है जब हमारी प्रभु में परमेश्वर में परमात्मा में पूर्ण आस्था वन जाती है. मैं तुमसे पूछता हूं या तुम्हारी आस्था परमात्मा में है? यह सुनकर आनंद कहता है कि hey महात्मा. मैं तो दुनिया देखकर आया हूं कि जो बुरे कर्म करता है वह फलता फूलता है. और जो अच्छा काम करता है उसे कुछ भी नहीं देता. परमात्मा उसे दुखी दुख देता है, इसीलिए मैं परमात्मा पर अपनी पूर्ण आस्था कैसे बना सकता हूँ? यह सुनकर उस बौद्ध भिक्षु ने कहा कि यही तो यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता हूँ कि तुम पूरी ऊर्जा अपनी सन्यासी जीवन में लगाओ और उसके बाद भी तुम्हें फ़ल प्राप्त ना हो तो तुम्हें कैसा लगेगा? इसीलिए किसी की भी मदद करने के लिए मैं पांच सिद्धांत तुम्हें बताता हूं. यह पांच सिद्धांत समझकर संसार में वहां लौट जाओ और संसार में एक ग्रहस्त जीवन जियो. उसके बाद ही सन्यासी जीवन का उदय होता है. जब हम अपने ग्रहस्त जीवन को पूर्ण रूप से समझ लेते हैं और अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह कर देते हैं. यह कहकर बौद्ध भिक्षु ने कहना शुरू किया कि जब भी तुम किसी की सहायता करते हो किसी की मदद करते हो तो उसमें सबसे पहली बात, सबसे पहला सिद्धांत जो ध्यान में रखने का होता है वह होता है कि किसी की मदद करते वक्त किसी की सहायता करते वक्त कभी भी उससे उम्मीद मत रखना. यह मत सोचना कि आज मैंने इसकी सहायता कर दी. मदद कर दी तो कल बदले में यह भी मेरी सहायता करेगा मेरी मदद करेगा अगर तुम ऐसा सोचोगे तो तुम्हें जीवन में दुखों का सामना करना ही पड़ेगा क्योंकि एक नहीं तो दूसरा या दूसरा नहीं तो तीसरा कोई ना कोई तुम्हारी उम्मीद ज़रूर थोड़े गा और वास्तविकता में वो मदद या वो सहायता सहायता नहीं होती वह हमारे लालच का ही एक रूप होता है. हम उसकी सहायता या मदद निर्भर तरीके से नहीं कर रहे हैं, हमारे मन में लालच का भाव है, हमारे मन में बदले का भाव है, हम यह सोचकर मदद करते हैं कि इसकी मदद कर देता हूं, तो कल यह मेरा भी मदद करे जाएगा और यही लालच हमें अक्सर उन लोगों की मदद करने पर विवश करता है जो किसी ना किसी रूप में धनवान होते हैं क्योंकि हमें लगता है कि कल यह आदमी धर्म के द्वारा मेरी मदद कर सकता है और इसीलिए जिस इंसान को वास्तविकता में मदद की आवश्यकता है, हो सकता है वो गरीब हो, लेकिन हमारा मन अपने लालच के वशीभूत होकर उसकी मदद कभी नहीं करेगा. इसीलिए किसी की मदद और किसी की सहायक करने के अपने विचार को विस्तार दो केवल एक प्रकार के वर्ग के लिए अपनी सहायता या अपनी मदद पेश मत करना उन सब के लिए समान होनी चाहिए. जरा सोचो एक तरफ तुम्हारा मित्र हो जिसके पास धन है, संपदा है, और दूसरी तरफ कोई गरीब औरत हो जो भूखी बैठी हुई है.
तुम्हारा दोस्त तुमसे कहता है कि यार आज तो खाने के लिए अच्छे अच्छे पकवान मंगवा लो बाज़ार से और दूसरी तरफ वो औरत तुमसे दो सूखी रोटी मांग रही है तो तुम किसकी मदद करोगे? कौन मदद का हकदार सबसे पहले है? सबसे पहले हमारा कर्तव्य बनता है कि उस औरत की भूख मिटाएं लेकिन अक्सर इंसान ऐसे नहीं सोचता वह अपने दोस्त को तो खिला देगा उसको तो बाज़ार से बहुत महंगी वस्तु मंगा के दे देगा लेकिन किसी गरीब को उसकी भूख मिटाने के लिए पैसा या धन नहीं देगा. दूसरी बात जो ख्याल में रखने की है वो ये कि सहायता करते वक्त हमारा लालच कभी भी उसके साथ नहीं जोड़ना चाहिए. अक्सर हम जब किसी की मदद करते हैं तो हमारा लालच और हमारा स्वार्थ उसके साथ जुड़ा होता है और हम अपनी भविष्य की योजना तैयार करके उस आदमी की मदद करते हैं. हम यह सोचते हैं कि अगर मैं इसका यह काम करेगा तो भविष्य में यह आदमी मेरा वह काम पूरा कर देगा और वो सहायता वो मदद बिल्कुल भी परमात्मा के द्वार को नहीं खटखटाती क्योंकि वो लालच है. आप अपने आप को धोखा देने के लिए अपने लालच को एक सहायता, एक मदद का रूप दे रहे हैं. तीसरी बात जो ख्याल रखने की है वो ये कि अपने सामर्थ्य के हिसाब से दूसरे की मदद करो. कभी भी एक ग्रस्त आदमी को किसी की इतनी सहायता नहीं करनी चाहिए जिससे कि उसका परिवार और उसके बच्चे कष्ट में जीवन बिताए. सबसे पहला फर्ज हमारा होता है अपने परिवार को सुखी रखना, उनकी ज़रूरतें पूरी करना और उसके बाद दूसरों की मदद करना आता हैं लेकिन कुछ लोग दूसरों की मदद पहले करते हैं और अपने परिवार को मदद कम देते हैं जिससे कि परिवार में लड़ाई झगड़े आए दिन पनपते रहते हैं और ये सब हम समाज में देखते रहते हैं. अपने आसपास अगली बात जो ख्याल में रखने की होती है वो ये अपना कर्म अपनी जिम्मेदारियां पहले निभानी होती हैं. हम अपना कर्म अपना काम छोड़कर पहले दूसरों की मदद करने के लिए चले जाते हैं. और जब दूसरा बदले में हमारी मदद नहीं करता तो हमारा दिल दुखी हो जाता है. हम सोचते हैं कि मैंने तो अपना काम छोड़ कर घुसा आदमी की मदद की थी और वो आदमी मेरी मदद ही नहीं कर रहा है इसीलिए अपना कर्म सर्वोपरि अपना कर्म सबसे ऊपर क्योंकि वही काम करने के लिए इस दुनिया में हमारा जन्म हुआ है और सबसे आखिर में जो बात समझने की है वो ये कि परमात्मा की मर्ज़ी से ही सब कुछ होता है. हमारा कर्तव्य है अपने कर्म को करते जाना. करनी धरनी तो ऊपर वाले के हाथ में है. इसीलिए जो कुछ भी होता है सब ऊपर वाले पर छोड़ दो.
अगर तुम्हें कोई धोखा भी देता है तो यह समझ के चलो कि वह सब ऊपर वाले की करनी होती है. आप यह मान के चलो कि मैं करता नहीं हूँ, मैं तो एक माध्यम हूँ, करवाने वाला तो वो है उसके सामने किसकी मर्ज़ी चली? जब ये आस्था ये विश्वास हमारे मन में पनपने लगता है तो हमारी सारी शिकायतें दूर हो जाती हैं क्योंकि इस दुनिया में जो भी होता है अच्छे के लिए होता है जो भी हो रहा है अच्छे के लिए हो रहा है और जो भी होगा अच्छा ही होगा. चाहे हमारी बुद्धि आज वर्तमान में इस सिद्धांत को ना समझ पाए. लेकिन जीवन में कभी ना कभी किसी ना किसी मोड़ पर आपको ज़रूर ये एहसास होगा कि जो हुआ था वो अच्छे के लिए ही हुआ था. इसीलिए सारी शिकायतें दूर कर दो और बस अपना कर्म करते जाओ अपने ग्रस्त जीवन को पूर्ण रूप से जिलों और उसके बाद ही सन्यासी जीवन की नींव होती है. इसके बाद बौद्ध भिक्षु ने आनंद को कहा कि वापस अपने गांव लौट जाओ. अपनी बेटियों को वापस लेकर आओ. उन्हें पालोपोसों अपने बच्चों को वापस लेकर आओ. दूसरी शादी कर लो. लेकिन बच्चों का पालन पोषण अच्छे तरीके से करो यह सुनकर आनंद अपने बच्चों के साथ अपने गांव में वापस लौट आता है गाँव में किसी को खबर नहीं थी कि आनंद कहाँ पर गया हुआ था और वो क्या ध्यान लेकर वापस लौटा है, लेकिन अगले दिन सुबह सुबह गाँव वालों ने आनंद के चेहरे पर एक अलग ही चमक, एक अलग ही आभा पाई, तो इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि दूसरों के पीछे भागने से अच्छा है, अकेले रहकर अपने आप को सुधारों और अपनों का काम बड़े ही खुशी से करो और शांत रहकर अपने आप की दिमाग की मन स्थिति को सुधारों. तो अब हम आपको बताएंगे कि शांत रहने के क्या क्या फ़ायदे हैं? तो चलिए शुरुआत करते हैं. हर तरफ शोर शराबे और भाग दौड़ के beach खामोशी की अपनी अलग ही खासियत है. आपने कई कविताओं में भी पढ़ा होगा कि मौन रहकर एक दूसरे की बात को समझना सबसे सुंदर संवाद है. लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि चुप रहने के अपने शारीरिक और मानसिक फ़ायदे भी हैं? विशेष्य मानते हैं कि मौन यानी शांत रहने से व्यक्ति अधिक दिमागदार और उत्पादक बनने की ओर अग्रसर होता हैं. इससे उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों में सुधार हो सकता है. मौन धारण करने का महत्व आज हम जिस युग में जी रहे हैं उसमें technology एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं जहा लोग एकांत की खोज में लगे रहते वो खुद को इन्हीं technology को कहीं गुम कर देते हैं लेकिन मौन को मन में बैठाने की दिशा में पहला कदम ये है कि आप अपने मानसिक स्वास्थ्य को अन्य सभी पहलुओं से बढ़कर समझे और फिर उन तकनीकों को शामिल करने का सचेत प्रयास करें जो आपको मौन रहने की आत्मीय उदार और शक्ति का अनुभव करने की अनुमति दे गाड़ियों के बेताहाशे horn से लेकर आसपास बचने वाले music on demand show और लोगों की झटपटर से लेकर आपकी building के ऊपर से उड़ते हुए हवाई जहाज की आवाज़ तक हर तरफ एक घना शोर है जिसमें दूसरों की तो क्या कभी कभी खुद की भी आवाज़ नहीं sun पाते आप के अंतर्मन की आवाज़, जिसे सुनने से आपके जीवन की आधी परेशानी का समाधान मिल सकता है. वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार ये हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी बात है कि लेकिन शांत रहना blood pressure कम कर सकता है.
एकाग्रता और ध्यान में सुधार ला सकता है, परेशान करने वाले विचारों को शांत कर सकता है, मस्तिष्क के विकास को बढ़ावा दे सकता है, court ईसूल को कम कर सकता है, अंदर की रचनात्मकता को बढ़ावा मिलता है, अच्छी नींद को बढ़ावा मिलता है, दिमागी रूप से स्वस्थ महसूस कर सकते हैं, हालांकि, यहाँ मौन रहने का मतलब परेशानी में भी चुप्पी साधे रहने से नहीं हैं, बल्कि अनावश्यक किसी भी शोर से दूर रहने और ध्वनि प्रदूषण से बचना है. मौन रहते हुए धीरे धीरे गहरी सांस लेने से भी फ़ायदे मिल सकते हैं. चुप रहना है. अनेक समस्याओं का हल, तनाव घटाने और एकाग्रता बढ़ाने के लिए हम आपको अब नौ फ़ायदे बनाएंगे meditation और ध्यान लगाना खुद को शांत करने और तनाव घटाने का एक बेहतरीन तरीका है आपने ध्यान दिया होगा कि हर धर्म और संस्कृति में शांत और मौन रहने को महत्व दिया गया है, चाहे आप इसे धार्मिक नाम दें या जीने का एक तरीका माने लेकिन दिन भर में कुछ समय तक शांत रहना आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद साबित होता है. कई psychologist भी confidence बढ़ाने, concentration बढ़ाने, मन की शांति और positive thinking के लिए कुछ minute मोहन धारण करने की सलाह देते हैं. जब हम कुछ समय मौन या चुप रहते हैं तो हमें खुद से बात करने का मौका मिलता है. हम चिंतन मनन करते हैं जिससे हमारा मन शांत होता है दिमाग relax रहता है और हमारा दिमाग नई ऊर्जा और विचारों से भरता है. चलिए आपको बताते हैं, चुप या मौन रहने के नौ फ़ायदे, पहला फ़ायदा दिमाग बेहतर काम करता है. एक research के मुताबिक अगर हम दिन भर में कुछ minute शांत रहते हैं तो हमारा दिमाग recharge होता है और बेहतर काम करता है. इसके लिए दिन भर में सिर्फ तीन minute चुप रहने से शुरुआत करें. ऐसा करने से आप देखेंगे कि आपका दिमाग ठंडा तो रहता ही है. आपके व्यक्तिगत रिश्तों में भी सुधार होता है. दूसरा फ़ायदा तनाव वाले hormone नियंत्रित होते हैं. आज के दौर में हर तरह शोर ही शोर है. इसकी वजह से दिमाग में तनाव पैदा होना लाज़मी है. ऐसे में अगर आप हर रोज़ कुछ देर मौन रहने की practice करते हैं तो इससे आप के तनाव पैदा करने वाले hormone के आती है इससे आपका दिमाग शांत होता है गुस्सा नियंत्रित रहता है और तनाव बढ़ाने वाले hormones का level घटता है. तीसरा फ़ायदा, brain cells बनती है. अक्सर तनाव, stress, anxiety और लगातार बोलते रहने और शोर शराबे के चलते हमारे दिमाग की कोशिकाएं मरने लगती हैं. ऐसे में कुछ देर मौन रहने से हमारे दिमाग की sales दोबारा बनती हैं और उनका पुनहनिर्माण हमारे दिमाग की शक्ति बढ़ाता है, इससे हमारी एकाग्रता बढ़ती है, और दिमाग तेज होता है. चौथा, शांत होकर सोचने समझने की क्षमता खोने लगते हैं. इस वजह से हमारी creativity खत्म होने लगती है.
जब हम कुछ देर मौन रहते हैं तो हमारे दिमाग की नई नई क्रिएटिविटी उभर कर सामने आती है. हमें सोचने, समझने और सुनने की क्षमता बढ़ाती है और हम कुछ नया कर पाते हैं. पांचवा फ़ायदा, परिस्थितियों का सामना बेहतर ढंग से करते हैं. एक रिसर्च में पाया गया है कि जो लोग मौन रहने की आदत डालते हैं वो मुश्किल और तनावपूर्ण परिस्थितियों से बेहतर ढंग से निकल पाने में सक्षम होते हैं. इसकी वजह ये है कि मुश्किल परिस्थिति में वो अपने आप को नहीं खोते और लॉजिक के साथ सोचने की काबिलियत रखते हैं. इस कारण वो परिस्थितियों का बेहतर सामना कर पाते हैं. छठा फ़ायदा दिमाग के लिए है ये है एक्सरसाइज. हमारे शरीर का सबसे जटिल हिस्सा दिमाग होता है. ये पूरे शरीर को चलाता है और ये हमारे सभी इमोशन को कंट्रोल करता है. ऐसे में ज़रूरी है कि हम अपने दिमाग को भी व्यायाम करवाएं. जिस तरह शरीर को मज़बूत बनाने के लिए शारीरिक व्यायाम ज़रूरी है उसी तरह दिमाग को मज़बूत बनाने के लिए उनकी ताकत बढ़ाना ज़रूरी है मौन रहना. दिमाग के लिए एक व्यायाम जैसा ही है और इससे दिमाग की मांसपेशियां तंदुरुस्त रहती हैं. सातवां फ़ायदे, पॉजिटिव विचारों का संचार, मौन रहना. हमारे दिमाग को पॉजिटिव विचारों से भरता है. जब हम दिमाग को बाहरी शोर शराबे से दूर करते हुए कुछ समय खुद पर केंद्रित करते हैं तो हम अपने आस पास की अच्छाइयों को बेहतर ढंग से देख और समझ पाते हैं इसके साथ ही हम अपने आस पास और खुद के भीतर की अच्छाइयों को एप्रिशिएट कर पाते हैं इसीलिए कुछ समय मौन रहते हुए खुद को समझना, अपने भीतर झांकना, और अपने बारे में समझना, एक बेहतरीन प्रैक्टिस है. आठवां फ़ायदा, एक अच्छे श्रोता और समीक्षाक चुप रहना और कुछ समय तक खुद को स्थिर रखना. आपको एक अच्छा श्रोता और समीक्षा बनाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब आप चुप रहते हैं तो आप बोलने की बजाए अधिक से अधिक सुनते हैं और उसका विश्लेषण कर पाते हैं. इससे आप पूरे तर्क और वितरकों को जानने के बाद सही फ़ैसला ले पाते हैं. आप सभी पक्षों को सुनते, समझते और डिसीजन ले पाते हैं. चुप रहना आपके दिमाग को शांत करता है और आपको लॉजिकल समीक्षा बनाता है.
कुछ मिनट के लिए मौन रहने के लिए लोग बहुत तरीकों का सहारा लेते हैं, कुछ भगवान के नाम का जाप करते हैं, कुछ आपके कृत्यों का विश्लेषण करते वहीं कुछ लोग माइंड फुलनेस प्रैक्टिस अपनाते हैं. चलिए आपको बताते हैं खुद को. खुद से जोड़ाते हुए मौन धारण करने के कुछ आसान तरीके. माइंड फुलनेस एक बेहतरीन मेडिटेशन प्रैक्टिस है जो आपको शांत रखने के साथ ही एंजाइटी और दिमाग को कंट्रोल करने का काम करती है, इसके लिए आप ये स्टेप्स अपना सकते हैं. पहला स्टेप, सबसे पहले आराम की अवस्था में बैठ जाए, और अपनी आंखों को रिलैक्स करते हुए मौन ले दूसरा स्टेप अब अपनी सांसों पर पूरा ध्यान केंद्रित करें. अपनी सांस के उठने और गिरने की गति पर ध्यान दें और अपना दिमाग बाहरी शोर से दूर सिर्फ और सिर्फ अपनी सांसों पर केंद्रित करें. तीसरा स्टेप अपनी सांसों पर ध्यान देना आपके पूरे शरीर को शांत करता है, दिमाग में रक्त संचार बढ़ाता है और तनाव दूर करने में मददगार होता है. चौथा, स्टेप, खुद को शांत करते हुए अपने पूरे शरीर को अंदर ही अंदर स्कैन करना भी फायदेमंद साबित होता है. इससे आपको अपने शरीर के बारे में बेहतर समझ में आता है, इससे आपके दिमाग और शरीर के बीच में बेहतर संबंध स्थापित होता है. हम उम्मीद करते हैं कि यह जानकारी आपके काम आएगी. तो चलिए जानते हैं हमारे शब्दों में कितनी ताकत होती है एक कहानी के माध्यम से तो चलिए उस कहानी की शुरुआत करते हैं जो लोग बुद्धिमान हैं वह यह जानते हैं कि शब्द हथियार की तरह होते हैं जिनसे किसी को भी बचाया जा सकता है या किसी को भी मारा जा सकता है. अब आप सोच रहे होंगे कि शब्दों से किसी को मारा कैसे जा सकता है तो जरा सोचिए ज़्यादातर आत्महत्याओं के पीछे किसका कारण होता है? किसी के पति ने कुछ कहा, किसी के पिता ने कुछ कहा, और उन लोगों ने आत्महत्या कर ली. ये आत्महत्या किसके कारण हुई, वो पीड़ित के मन को इतना दुखी कर गए कि उसके मन से वो दुख सहना और ज़्यादा बर्दश करना नामुमकिन हो गया और इसी वजह से उन्होंने आत्महत्या कर ली.
ऐसे ही आपके शब्द किसी को नया जीवन प्रदान कर सकते हैं. जब कोई आदमी उदास होता है या दुखी होता है तो आपके शब्द उसमें एक नया जोश, एक नया उत्साह भर सकते हैं और एक हारा हुआ आदमी अपने जीवन में एक नई शुरुआत कर सकता है सिर्फ शब्दों के माध्यम से हमारी वाणी के माध्यम से, तो अब तक आप ये तो समझ ही गए होंगे कि हमारे शब्द हमारे जीवन को किस तरह निर्धारित करते हैं, शब्दों में कितनी ताकत होती है और किसी से बात करते वक्त हमें कितनी सावधानी से अपने शब्द सुनने चाहिए आज की जो बौद्ध कहानी मैं आपको सुनाने वाला हूँ, उसमें आपको सीधे सीधे तौर पर कुछ ऐसे तरीके पता चलेंगे, कुछ ऐसी परिस्थितियां पता चलेंगी, जहां पर आपको हमेशा चुप रहना चाहिए. कुछ परिस्थितियों में अगर आप कुछ नहीं बोलेंगे तो वही आपके लिए सबसे ज़्यादा बेहतर होगा. इससे पहले कि आप इस कहानी में खो जाए इस चैनल को सब्सक्राइब ज़रूर कर लें तो चलिए कहानी शुरू करते हैं
एक बार की बात है एक युवा लड़का एक बार एक बौद्ध भिक्षु के पास पहुंचा वो काफी परेशान लग रहा था और उसने बौद्ध भिक्षु से जाकर पुछा कि हे महात्मा, मैं अपने आप से परेशान हूं, अपने आप से दुखी हूं. बाहरी रूप से मुझे कोई दुख नहीं है. मैं धन धान या संपन्न हूं, मुझे कोई शारीरिक रोग भी नहीं है, लेकिन मैं खुद से परेशान रहता हूं अपने मन से परेशान रहता हूं. अक्सर मेरी बातों को मेरा कोई भी दोस्त गंभीरता से नहीं लेता है और ना ही मेरे परिवार के लोग मेरी किसी बात को गंभीरता से लेते हैं मैं जो कुछ भी सलाह देता हूं या तो वह उसे मजाक में उड़ा देते हैं या फिर उसे गंभीरता से लेते ही नहीं है मेरी बातों को कोई गंभीरता से क्यों नहीं लेता है? क्यों मेरी बातों पर कोई अमल नहीं करता? क्यों मेरी बातों में कोई रुचि नहीं दिखाता? क्या कारण है? कृपया मुझे बताने का कष्ट करें और मेरे मन के इस दुख को दूर करें. यह सुनकर बौद्ध भिक्षु ने कहा, कि आज सुबह में चालित ध्यान करके वापस आ रहा था. रास्ते में कुछ कव्वे कांव कांव कर रहे थे और वहीं पर जब मैं चलता हुआ कुछ दूर आया तो मुझे एक मोर की मधुर आवाज़ सुनाई दी. यह सुनकर अचानक मेरे मन में ख्याल आया कि कव्वे कितना कांव कांव करते हैं.
कितना बोलते रहते हैं लेकिन कोई भी प्राणी कव्वे की आवाज़ को पसंद नहीं करता मोर हमेशा सही परिस्थिति के हिसाब से बोलता है जब भी बारिश होने वाली होती है और बादल गरजते हैं और बारिश होने की आशंका होती है. ऐसे में मोर अपनी मधुर आवाज़ में गाता है जो सभी को प्रिय होता है, सभी को अच्छा लगता है. ऐसे ही अगर इंसान सही परिस्थिति के हिसाब से सही शब्द बोले सही वाणी बोले तो वही वाणी दूसरों के लिए संगीत हो जाती है, संगीत वन जाती है और दूसरे लोग तुमसे सम्मोहित हो जाते हैं और वहीं पर तुम्हें सब लोग गंभीरता से लेने लगते हैं और दूसरी तरफ अगर तुम यूं ही बेफिज़ूल ऐसे ही बोलते रहते हो बिना किसी बात के बोले चले जाते हो तो फिर तुम्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता तुम उस कव्वे की बनती हो जाते हो जिसकी वाणी कोई पसंद नहीं करता और बाद में तुम्हें दुख होता है कि तुम्हें कोई गंभीरता से क्यों नहीं लेता. इसीलिए अपने शब्दों को बेहद बुद्धिमानी के साथ इसे इस्तेमाल करना सीखो. अगर तुम नहीं सीखोगे तो समाज में तुम्हें कोई सम्मान या कोई गंभीरता से नहीं लेगा. यह सुनकर वह युवा लड़का बोला कि हे महात्मा मैं जानता हूं कि मैं ज़्यादा बोलने की बीमारी से ग्रस्त हूं मुझे इतना नहीं बोलना चाहिए लेकिन मैं अपने आप में काबू नहीं रख पाता और ना ही मैं इतना बुद्धिमान हूँ कि मैं अपने शब्दों को नाप तौल कर बोल सकू मैं तो किसी से बात करते वक्त इतना सोचता भी नहीं कि मुझे अपने शब्द किस तरह इस्तेमाल करने हैं कृपया करके कुछ ऐसी परिस्थितियां बता दीजिए जहां पर मुझे कम बोलना है या फिर बोलना ही नहीं है हमेशा चुप रहना है अगर आप मेरा ऐसे मार्गदर्शन कर सकते हैं तो मेरा जीवन आसान हो जाएगा और मुझे ज़्यादा दिमाग या अपनी बुद्धि लगाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी. यह सुनकर बौद्ध भिक्षु ने मुस्कुराते हुए कहा कि बेटा वैसे तो इंसान को हर परिस्थिति में सोच समझकर ही बोलना चाहिए लेकिन अगर वह हमेशा होश में नहीं रह पाता है, ध्यान में नहीं रह पाता है, तो मैं तुम्हारे दैनिक जीवन की कुछ ऐसी परिस्थितियां बता रहा हूं जहां पर तुम्हें हमेशा चुप रहना है.
अगर तुम ऐसी जगहों पर कुछ बोलोगे तो वहां तुम्हारा अपमान ही होगा या फिर तुम्हें कोई गंभीरता से नहीं लेगा सबसे पहली जगह है या यूँ कहे ऐसी परिस्थिति जहां पर इंसान को हमेशा चुप रहना चाहिए. वह है जब किसी ऐसे विषय के बारे में बातचीत हो रही हो जिसके बारे में आपको कोई जानकारी ही नहीं है, तो ऐसी परिस्थिति में व्यर्थ में बीच में टांग अड़ाना, अपना ध्यान देना, व्यर्थ का ध्यान आपको कुछ पता नहीं है लेकिन फिर भी आप अपना ध्यान देने के लिए उत्सुक हैं, तो ऐसी जगह पर आपका अपमान ही होगा. जरा तुम खुद सोचो जब कोई बीमार आदमी अपनी बीमारी के बारे में चर्चा कर रहा हो और आपको उस बीमारी के बारे में कोई भी ज्ञान नहीं है, लेकिन फिर भी आप व्यर्थ में, बेकार में, उसे ऐसी ऐसी औषधियां बता रहे हैं जिनका उसकी बीमारी से कोई तालमेल ही नहीं है तो ऐसे में आप अपनी प्रतिष्ठा अपने हाथों से खो रहे होते हैं और आपको पता ही नहीं होता. ऐसी परिस्थिति में आदमी को हमेशा सुनना चाहिए, ध्यान से सुनना भी एक कला होती है. अगर आप सुनने का दिखावा करेंगे तो कहीं ना कहीं सामने वाले आदमी को ये अहसास हो जाता है कि ये मेरी बात पूरे ध्यान से नहीं सुन रहा है, इसीलिए जब आपको किसी विषय के बारे में पूरी तरह से ज्ञान ना हो तो वहां पर केवल अपने कान लगाना ही ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है, ज़्यादा ज़रूरी होता है. आप उस इंसान की बातें ध्यान से सुन सकते हैं और इसी बीच आप दोनों के बीच एक संबंध पैदा होगा और उस संबंध सच्चा होगा, क्योंकि आपने उसके बाद को बड़े ही ध्यान से सुना है और इस बात का पता सामने वाले को भी होता है तो हम बिना कुछ बोले सिर्फ सुनने मात्र से किसी को अपना दोस्त बना लेते हैं अपना मित्र बना सकते हैं. इस बात को हमेशा ध्यान में रखना. दूसरी जगह जहा इंसान को हमेशा चुप रहना चाहिए वो है खाना खाते वक्त, खाना इंसान को हमेशा चुप रह कर खाना चाहिए, मौन रह कर खाना चाहिए, महात्मा बुद्ध और उनके भिक्षु हमेशा चुप रहकर भोजन करते हैं शांत भाव से भोजन करते हैं परिपूर्ण होकर भोजन करते हैं पूरी तरह से करते हैं एक एक टुकड़े का स्वाद लेकर भोजन करते हैं और ऐसा भोजन जब आपके शरीर में पहुंचता है तो वह आपके अंग अंग तक ऊर्जा पहुंचाता है. अक्सर हम भोजन करते वक्त कुछ ना कुछ बोलते रहते हैं, कुछ ना कुछ सुनते रहते हैं, लेकिन मौन रहकर पूरा स्वाद लेकर उस भोजन को कभी नहीं करते, हम उस भोजन को करते वक्त आधे अधूरे ही रहते हैं और इसीलिए हमारा शरीर रोगों से ग्रस्त हो जाता है. जरा तुम खुद सोचो बौद्ध भिक्षु हमेशा भिक्षा लेकर भोजन करता है और भिक्षा भी कितनी बिल्कुल मामूली सी और वह भी एक वक्त, तो एक वक्त भोजन के बाद भी वो इतने सवस्थ रहते थे इतने उत्साह जोश और आनंद से भरे होते थे. और हम तो इतना खाना खाते हैं इतने सारे भोजन की सामग्री हमारे लिए उपलब्ध होती है लेकिन हमारे शरीर में कोई ऊर्जा नहीं होती.
इसका सबसे बड़ा कारण होता है कि हम अपना भोजन होश में नहीं करते हैं. परिपूर्ण होकर नहीं करते हैं, मौन रहकर नहीं करते हैं, इसीलिए अपना भोजन हमेशा मौन रहकर ही करो. तीसरी जगह जहां पर अगर आपने चुप रहना सीख लिया तो इसका मतलब यह है कि आपने ऊपर विजय हासिल कर ली, जो हे गुस्से में शांत रहना या चुप रहना इतना आसान नहीं होता है. अक्सर हम गुस्से से भरकर कुछ ऐसे शब्द या अपशब्द बोल जाते हैं जिसका पछतावा हमेशा बाद में होता रहता है, लेकिन जुबान से निकला हुआ शब्द वापस नहीं हो सकता. उस शब्द को मिटाया भी नहीं जा सकता. अब वह ज़िंदगी भर हमारे मन से जुड़ चुका है और वह गुस्से में बोला गया. अब शब्द हमारे मन को समय समय पर बेचैन करता रहता है, दुखी करता रहता है. लेकिन गुस्से के वक्त चुप रहना, सीखना भी एक बहुत बड़ी कला होती है, गुस्से में आदमी का अपने ऊपर काबू कहां रहता है, अपनी इंद्रियों को वश में कहां रख पाता है, इसीलिए इस कला को आप तभी सीख सकते हैं जब आप गुस्सा भी होश में रह कर कर पाए, जब भी आपको गुस्सा आए, आपके दिमाग में सिर्फ एक ही बात आए कि मुझे चुप रहना है, मुझे किसी से कुछ गाली गलौच नहीं करना, किसी को कोई अपशब्द नहीं बोलना, और जब यह विचार गुस्से के साथ छूट जाता है और धीरे धीरे यह आदत वन जाता है, तो आप अपने गुस्से को भी काबू में करना सीख जाते हैं. जब भी कभी गुस्सा आए तो किसी को कुछ बोलने की बजाए कुछ शारीरिक व्यायाम करना शुरू कर, छलना, भागना, दौड़ना, जिम करना, कुछ भी. आप ऐसा व्यायाम कर सकते हो जिसमें आपका शरीर थक जाए, आप पाएंगे कि जब आपका शरीर थक जाता है तो आपका मन भी शांत हो जाता है. आपने उस गुस्से की ऊर्जा को एक सकारात्मक रूप दे दिया और यही बुद्धिमान व्यक्ति की पहचान होती है जो दूसरों के तानों से भी अपना घर बना लेता है. अपनी कामयाबी के रास्ते निकाल लेता है वही सच में बुद्धिमान आदमी है जो जहर को भी दवा बनाकर इस्तेमाल करना सीख जाए वही असली बुद्धिमान होता है.
चौथी जगह जहां आप चुप रहेंगे तो आपके लिए वही सबसे ज़्यादा बेहतर होगा वही आपको सम्मान दिलाएगा. चौथी जगह है जब चार लोग आपस में बैठकर बातें कर रहे हो, कोई बैठक कर रहे हो तो वहां पर जब चार लोग बात कर रहे होते हैं तो चारों लोग एक साथ तो बात कर नहीं सकते. एक बार में एक व्यक्ति बोलेगा और तीन सुनेंगे तभी वो बैठक कामयाब हो पाएगी तभी वो चर्चा सही रूप में आगे बढ़ पाएगी. लेकिन अगर कोई आदमी ऐसा बैठा हुआ है जो बीच में ही दूसरे की बात काटकर अपनी बात को ऊपर रखना चाहता है. तो ऐसे में वह चर्चा या वह बैठक आपको कहीं नहीं पहुंचाएगी और चारों लोगों के बीच आप सबसे मूर्ख कहलाओगे. अगर आपको अपनी बात कहनी है तो सामने वाले को अपनी बात पूरा करने दो, उसके बाद अपने विचार रखो. यही एक भद्र पुरुष या फिर कहीं अच्छे आदमी की पहचान होती है. और आखिरी जगह अगर हमारे माता पिता हमें कुछ कह देते हैं, हमारे बड़े बुज़ुर्खा में किसी बात पर दौड़ देते हैं या हमें थप्पड़ भी मार देते हैं तो ऐसी जगहों पर आपका चुप रहना ही उनके प्रति सम्मान दिखाएगा, उनके प्रति आदर का भाव व्यक्त होगा. अगर आप उनके सामने उनका विरोध कर देते हैं, उनका प्रतिरोध कर देते हैं, तो वो गुस्सा तो थोड़ी देर बाद शांत हो जाएगा, लेकिन वो कहीं गई बात वो विरोध किया हुआ शब्द या फिर कुछ भी उल्टा सीधा हमेशा आपके मन को सताएगा और आपके माता पिता को हमेशा यही लगेगा कि आज यह हमारी इज्जत नहीं करता. आज ही हमारी बात नहीं मानता क्योंकि ये कमाने लग गया है ये बड़ा आदमी वन गया है ऐसी ऐसी बातें उठेंगी ऐसे ऐसे तंज कसे जाएंगे इसीलिए ऐसी जगह पर आप मौन रहिए चुप रहिए कुछ मत बोलिए अपने गुस्से को अपने अंदर ही पी लीजिए कुछ व्यायाम कर लीजिए भाग लीजिए दौड़ लीजिए आपका मन अपने आप शांत हो जाएगा. आखिर में बौद्ध भिक्षु ने अपनी बात को खत्म करते हुए कहा कि कम शब्दों में अपनी भावनाओं को उतारना सीखो, शब्द हथियार की तरह होते हैं, बोलो तो होश में बोलो, ध्यान में बोलो, जीवनशैली ऐसी बना लो कि आप जब भी बोलो, पूरे होश में रहकर बोलो, पूरे आने के साथ बोलो, पूरे प्रेम के साथ बोलो, ऐसी वाणी बोलो जो दूसरे के दिल को ठंडक पहुंचाती हो.
दूसरे के मन को भी शांत कर देती हो और वह तभी संभव है जब आप प्रतिपक्ष में रहकर बोले, इसके बाद वह युवा लड़का बौद्ध भिक्षु के सामने नतमस्तक हो गया और उनको प्रणाम करते हुए अपने घर वापस लौट गया. अब हम जानेंगे महात्मा गौतम बुद्ध के अनुसार अपने मन को जल्दी से जल्दी वश में कैसे किया जाए तो चलिए जानते हैं गौतम बुद्ध से शांति के फ़ायदे तो आपको पता चल गए अब गौतम बुद्ध के अनुसार अपने मन को कैसे संयमित किया जाए? चलिए उसके बारे में जानते हैं भगवान गौतम बुद्ध कहते थे ये संसार एक मायाजाल है जो कि मनुष्य को अच्छाई भी दिखाता है और बुराई भी दिखाता है. कभी सुंदरता दिखाता है तो कभी दुर्बलता दिखाता है. कभी यह संसार मनुष्य को आकर्षित करता है और कभी कभी मनुष्य को इतना उलझा देता है कि मनुष्य को खुद के जीवन का ध्यान ही नहीं रहता इसलिए संसार के मायाजाल से बचने के लिए भगवान गौतम बुद्ध कहते हैं जो पुरुष अपने खुद के इंद्रियों से कभी नहीं हारा. वह संसार से या पूरे ब्रह्मांड के किसी भी चीज़ से कभी हार ही नहीं सकता, वह मनुष्य जहां भी हो उसकी विजय निश्चित है. दोस्तों आपको बता दें कि इंद्रियों का मतलब होता है कान, नाक, त्वचा, जीभ, हाथ, इन पांच शरीर के भागों को मुख्य इंद्रियां कहा जाता है. इन इंद्रियों को जो पुरुष या स्त्री अपने मन से संयमित कर पाते हैं, वह पुरुष या स्त्री बड़ी आसानी से संसार के महासागर को पार कर लेते हैं यानी कि किसी भी चीज़ से वह आकर्षित नहीं होते और अपना बड़े ही विश्वास के साथ करते रहते हैं. ऐसे ही मनुष्य संसार में या इस लोक में या परलोक में बार बार विजयी होते रहते हैं. तो चलिए जानते हैं कि हमारे मन को कैसे वश में किया जाए ताकि हम इस संसार के मायाजाल में फिर से न फ़ंसे भगवान गौतम बुद्ध कहते हैं मन को वश में करने के लिए सबसे पहले आपको यह जानना होगा कि आपके शरीर से श्रेष्ठ आप की इंद्रियां होती हैं. आपकी इंद्रियों से श्रेष्ठ आपका मन होता हैं और आपके मन से श्रेष्ठ आपकी बुद्धि होती हैं.
और अंततः बुद्धि से श्रेष्ठ आपका आत्मा होता है और आत्मा से भी श्रेष्ठ परमात्मा होते हैं यानी भगवान होते हैं तो अगर आपके मन को वश में करना है तो सबसे पहले आपकी बुद्धि में ये विचार करें कि मैं आज से बुरे कामों के बारे में सोचूंगा भी नहीं और मेरे अच्छे काम विश्वास से करता रहूंगा. दोस्तों अगर आप बुरी आदतों के बारे में सोचोगे ही नहीं, तो वह आदतें आपकी बुद्धि पर हावी नहीं होगी और आप कभी गलत काम नहीं करोगे तो सबसे पहली बात तो यह है कि अपने बुद्धि में से बुरी को निकाल दो और अपनी बुद्धि में जो भी आपका काम है उस काम के बारे में विचार डालना शुरू कर दो. फिर आपकी बुद्धि आपके मन को आपके काम के बारे में संदेश देगी और मन सभी इंद्रियों को वश में करके आपके काम के ऊपर लगा देगा तो इसी तरह से करते करते आपका मन एक दिन अवश्य ही वश में हो जाएगा और जिस व्यक्ति का मन वश में हो जाता है उस व्यक्ति के मन में हमेशा ही भगवान वास करते हैं तो देखा दोस्तों, मन को वश में करने के लिए सबसे पहले आपको अपनी बुद्धि को अपने काम के बारे में ज्ञान देना होगा और बुद्धि में से बुरी आदतों को बिल्कुल निकलना होगा, यानी कि उनके बारे में सोचना ही छोड़ना होगा, तब जाकर आप अपने मन को वश में अवश्य ही कर पाओगे और जब आप पूर्णता आप अपने मन को वश में कर लोगे, तब आपके लिए सुख दुःख सर्दी गर्मी और मान अपमान सब एक जैसा होगा और आप इस दुनिया के माया से परे हो जाओगे आपको कोई भी चीज़ आकर्षित नहीं कर पाएगी उल्टा आपसे ही लोग आकर्षित होंगे और आप जैसा भी काम करते हैं लोग भी आपको देखकर वैसा ही काम करेंगे और लोगों को आप एक आकर्षित और बुद्धिमान मनुष्य लगोगे इसलिए हमारे भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने ये कहा है कि मन का सारा खेल है मन के हारे हार हैं और मन के जीते जीत हैं. ऐसा ही हमारे भगवान बुद्ध ने और ना जाने कितने सफल लोगों ने कहा हैं. भगवान बुद्ध ने कहा है कि जिसने अपने मन को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते हैं. अर्थात मन को वश में करने का नाम ही आत्मसंय है जिसका अर्थ है अपने आप को वश में करना. अर्थात मन, वचन और कर्म पर अधिकार प्राप्त करना ताकि शरीर से कोई अशुभ कार्य न होने पाए जिससे कोई अपशब्द ना निकले और मन में कभी अशुभ विचार ना उठने पाए.
यदि मनुष्य अपनी इंद्रियों का प्रयोग उचित ढंग से करता है तो ही उस मनुष्य को दूसरों को ध्यान देने का अधिकार है. यदि उसका अपने मन पर अधिकार नहीं है उचित और अनुचित का ध्यान नहीं है तो वह मनुष्य के पद से गिर कर अन्य योनियों में गिने जाने योग्य हो सकता है. एक कथन है कि हम जैसा सोचते हैं वैसा ही वन जाते हैं वास्तव में यह विचार नहीं अपितु विचारों का संसार है हमारी सोच और विचारों का प्रभाव हमारे मन पर गहरा असर छोड़ देता है मनुष्य के मन में विचार ही बार बार उभर कर आते हैं जो मनुष्य को दिशा देने का काम करते हैं, विचार ही मस्तिष्क को गति प्रदान करते हैं और गलत विचार क्रोध की ओर जाने को विवश करते हैं. यह हमारी भूल है कि हम सोचते हैं कि वचनों की कोई शक्ति नहीं है. संसार में जो भी हुआ, जो भी हो रहा है और जो भी होगा सब हमारे कर्म के प्रभाव से हुआ है और जो हो सकता है और आगे जो हो गा वह कर्म की शक्ति से होता है, वह विचारों की शक्ति होती है. यदि हमारे अंदर आत्म संयम नहीं है तो आत्म्मिकता का धन हमारे हाथ नहीं आ सकता है. हम इन्द्रियों के जाल में फ़ंस कर पहले तो निर्मल होंगे फिर अपमानित होते हुए पहले अपना अनिश्चित करेंगे और फिर किसी और का करेंगे. ये सच है कि जो लोग दूसरों के लिए सोचते हैं उनका मन विश्वासपूर्ण विचारों का स्त्रोत है. इसलिए यदि बुराई से बचना हो तो अपनी दिशा को भलाई की और मुद्रा देना चाहिए. वास्तव में यदि आप जीतना ही चाहते हैं तो सबसे पहले संयम की आदत डाल लें क्योंकि संयम का अर्थ ही है अपनी बिक्री हुई शक्तियों को निश्चित दिशा देना मान लीजिए जिस कार्य को नहीं करना है और जब उसे ही करने के लिए मन आकर्षित करता है, तो आप उसे प्रयासपूर्वक रोकने के लिए मन बना लें, उसे ही आत्मसंयम कहते हैं. संयम का अर्थ है जब हम आकर्षणों की ओर जाने के लिए हमारा मन सहज रूप से रुक जाए. गांधी जी ने कहा था कि अनुशासन और बलिदान के बिना मुक्ति की आशा नहीं की जा सकती है, लेकिन यह बात भी सच है कि लोग गुस्से में विवेक शून्य होकर तुरंत अपने आत्मसंयम को गुस्से में खो देते हैं. यह सच है कि समय बीतने में लोगों के आत्मसंयम में भारी कमी आई है. इसके गंभीर परिणाम सामने भी आए हैं.
इसलिए आत्मसंयम की उपयोगिता को किसी भी हाल में कम नहीं आंका जा सकता है, लेकिन यह भी सच है कि शुरुआत में आत्मसंयम का मार्ग थोड़ा कठिन लगता है. अर्थात मन को वश में करने का नाम ही आत्म संयम है. मनुष्य को मिली हुई शक्तियों को निश्चित दिशा देना संयम कहलाता है. तो दोस्तो उम्मीद है कि आपको मन को वश में करने का उपाय और शांति के फ़ायदे और कहां कहां आपको शांत रहना है. इसके बारे में इस विडियो के माध्यम से पता चला होगा और मुझे यह आशा है कि आप अवश्य ही अपने मन को वश में करोगे और ज़िंदगी के सभी परिस्थिति में अवश्य ही सफल होकर अपने परिवार का नाम रोशन करोगे, ऐसी ही और गौतम बुद्ध की प्रेरणादायी सीख लेने के लिए हमारे Rajib Inspired YouTube channel को subscribe कीजिए और इस Story को जितना हो सके उतना अपने दोस्तों के साथ शेयर करें. मिलते हैं हमारे अगले Stories में नमो बुधाए